॥ ॐ नमो भगवते
वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
सप्तम
स्कन्ध – नवाँ
अध्याय..(पोस्ट१२)
प्रह्लादजी
के द्वारा नृसिंहभगवान् की स्तुति
एवं
सहस्रवदनाङ्घ्रिशिरःकरोरु
नासाद्यकर्णनयनाभरणायुधाढ्यम्
मायामयं
सदुपलक्षितसन्निवेशं
दृष्ट्वा
महापुरुषमाप मुदं विरिञ्चः ||३६||
तस्मै
भवान्हयशिरस्तनुवं हि बिभ्रद्
वेदद्रुहावतिबलौ
मधुकैटभाख्यौ
हत्वानयच्छ्रुतिगणांश्च
रजस्तमश्च
सत्त्वं
तव प्रियतमां तनुमामनन्ति ||३७||
इत्थं
नृतिर्यगृषिदेवझषावतारैर्
लोकान्विभावयसि
हंसि जगत्प्रतीपान्
धर्मं
महापुरुष पासि युगानुवृत्तं
छन्नः
कलौ यदभवस्त्रियुगोऽथ स त्वम् ||३८||
विराट्
पुरुष सहस्रों मुख,
चरण, सिर, हाथ, जङ्घा, नासिका, मुख, कान, नेत्र, आभूषण और आयुधोंसे
सम्पन्न था। चौदहों लोक उसके विभिन्न अङ्गों के रूप में शोभायमान थे। वह भगवान् की
एक लीलामयी मूर्ति थी। उसे देखकर ब्रह्माजीको बड़ा आनन्द हुआ ॥ ३६ ॥ रजोगुण और
तमोगुणरूप मधु और कैटभ नामके दो बड़े बलवान् दैत्य थे। जब वे वेदोंको चुराकर ले
गये, तब आपने हयग्रीव-अवतार ग्रहण किया और उन दोनोंको मारकर
सत्त्वगुणरूप श्रुतियाँ ब्रह्माजीको लौटा दीं। वह सत्त्वगुण ही आपका अत्यन्त प्रिय
शरीर है—महात्मालोग इस प्रकार वर्णन करते हैं ॥ ३७ ॥
पुरुषोत्तम ! इस प्रकार आप मनुष्य, पशु-पक्षी, ऋषि, देवता और मत्स्य आदि अवतार लेकर लोकोंका पालन
तथा विश्वके द्रोहियोंका संहार करते हैं। इन अवतारोंके द्वारा आप प्रत्येक युगमें
उसके धर्मोंकी रक्षा करते हैं। कलियुगमें आप छिपकर गुप्तरूपसे ही रहते हैं,
इसीलिये आपका एक नाम ‘त्रियुग’ भी है ॥ ३८ ॥
शेष
आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड 1535 से