॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
अष्टम स्कन्ध – पाँचवाँ
अध्याय..(पोस्ट०१)
देवताओं का ब्रह्माजी के पास जाना और
ब्रह्माकृत भगवान् की स्तुति
श्रीशुक उवाच -
राजन् उदितमेतत्ते हरेः कर्माघनाशनम् ।
गजेन्द्रमोक्षणं पुण्यं रैवतं त्वन्तरं श्रृणु ॥ १ ॥
पञ्चमो रैवतो नाम मनुस्तामससोदरः ।
बलिविन्ध्यादयस्तस्य सुता हार्जुनपूर्वकाः ॥ २ ॥
विभुरिन्द्रः सुरगणा राजन्भूतरयादयः ।
हिरण्यरोमा वेदशिरा ऊर्ध्वबाह्वादयो द्विजाः ॥ ३ ॥
पत्नी विकुण्ठा शुभ्रस्य वैकुण्ठैः सुरसत्तमैः ।
तयोः स्वकलया जज्ञे वैकुण्ठो भगवान् स्वयम् ॥ ४ ॥
वैकुण्ठः कल्पितो येन लोको लोकनमस्कृतः ।
रमया प्रार्थ्यमानेन देव्या तत्प्रियकाम्यया ॥ ५ ॥
तस्यानुभावः कथितो गुणाश्च परमोदयाः ।
भौमान् रेणून्स विममे यो विष्णोर्वर्णयेद्गुणान् ॥ ६ ॥
श्रीशुकदेवजी कहते हैं—परीक्षित् ! भगवान्की यह गजेन्द्रमोक्षकी पवित्र लीला समस्त पापोंका नाश
करनेवाली है। इसे मैंने तुम्हें सुना दिया। अब रैवत मन्वन्तरकी कथा सुनो ॥ १ ॥
पाँचवें मनुका नाम था रैवत। वे चौथे मनु तामस के सगे भाई थे। उनके अर्जुन, बलि,
विन्ध्य आदि कई पुत्र थे ॥ २ ॥ उस मन्वन्तर में इन्द्रका
नाम था विभु और भूतरय आदि देवताओंके प्रधानगण थे। परीक्षित् ! उस समय हिरण्यरोमा, वेदशिरा, ऊर्ध्वबाहु
आदि सप्तर्षि थे ॥ ३ ॥ उनमें शुभ्र ऋषिकी पत्नीका नाम था विकुण्ठा। उन्हींके
गर्भसे वैकुण्ठ नामक श्रेष्ठ देवताओंके साथ अपने अंशसे स्वयं भगवान्ने वैकुण्ठ
नामक अवतार धारण किया ॥ ४ ॥ उन्हींने लक्ष्मीदेवीकी प्रार्थनासे उनको प्रसन्न
करनेके लिये वैकुण्ठधामकी रचना की थी। वह लोक समस्त लोकोंमें श्रेष्ठ है ॥ ५ ॥ उन
वैकुण्ठनाथके कल्याणमय गुण और प्रभावका वर्णन मैं संक्षेपसे (तीसरे स्कन्धमें) कर
चुका हूँ। भगवान् विष्णुके सम्पूर्ण गुणोंका वर्णन तो वह करे, जिसने पृथ्वीके परमाणुओंकी गिनती कर ली हो ॥ ६ ॥
शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड 1535 से