॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
नवम स्कन्ध –पंद्रहवाँ अध्याय..(पोस्ट०५)
ऋचीक,
जमदग्नि और परशुरामजी का चरित्र
तं आपतन्तं भृगुवर्यमोजसा
धनुर्धरं बाणपरश्वधायुधम् ।
ऐणेयचर्माम्बरमर्कधामभिः
युतं जटाभिर्ददृशे पुरीं विशन् ॥ २९ ॥
अचोदयद्धस्तिरथाश्वपत्तिभिः
गदासिबाणर्ष्टिशतघ्निशक्तिभिः ।
अक्षौहिणीः सप्तदशातिभीषणाः
ता राम एको भगवानसूदयत् ॥ ३० ॥
यतो यतोऽसौ प्रहरत्परश्वधो
मनोऽनिलौजाः परचक्रसूदनः ।
ततस्ततश्छिन्नभुजोरुकन्धरा
निपेतुरुर्व्यां हतसूतवाहनाः ॥ ३१ ॥
दृष्ट्वा स्वसैन्यं रुधिरौघकर्दमे
रणाजिरे रामकुठारसायकैः ।
विवृक्णचर्मध्वजचापविग्रहं
निपातितं हैहय आपतद् रुषा ॥ ३२ ॥
अथार्जुनः पञ्चशतेषु बाहुभिः
धनुःषु बाणान् युगपत् स सन्दधे ।
रामाय रामोऽस्त्रभृतां समग्रणीः
तान्येकधन्वेषुभिराच्छिनत् समम् ॥ ३३ ॥
पुनः स्वहस्तैरचलान्मृधेङ्घ्रिपान्
उत्क्षिप्य वेगाद् अभिधावतो युधि ।
भुजान् कुठारेण कठोरनेमिना
चिच्छेद रामः प्रसभं त्वहेरिव ॥ ३४ ॥
कृत्तबाहोः शिरस्तस्य गिरेः श्रृङमिवाहरत् ।
हते पितरि तत्पुत्रा अयुतं दुद्रुवुर्भयात् ॥ ३५ ॥
सहस्रबाहु अर्जुन अभी अपने नगर में प्रवेश कर ही रहा था कि उसने देखा परशुराम जी महाराज बड़े वेगसे उसी की ओर झपटे आ रहे हैं। उनकी बड़ी विलक्षण झाँकी थी। वे हाथ में धनुष-बाण और फरसा लिये हुए थे, शरीरपर काला मृगचर्म धारण किये हुए थे और उनकी जटाएँ सूर्यकी किरणोंके समान चमक रही थीं ॥ २९ ॥ उन्हें देखते ही उसने गदा, खड्ग, बाण, ऋष्टि, शतघ्री और शक्ति आदि आयुधों से सुसज्जित एवं हाथी, घोड़े, रथ तथा पदातियों से युक्त अत्यन्त भयङ्कर सत्रह अक्षौहिणी सेना भेजी। भगवान् परशुरामने बात-की-बातमें अकेले ही उस सारी सेनाको नष्ट कर दिया ॥ ३० ॥ भगवान् परशुरामजीकी गति मन और वायुके समान थी। बस, वे शत्रुकी सेना काटते ही जा रहे थे। जहाँ-जहाँ वे अपने फरसेका प्रहार करते, वहाँ-वहाँ सारथि और वाहनोंके साथ बड़े-बड़े वीरोंकी बाँहें, जाँघें और कंधे कट-कटकर पृथ्वीपर गिरते जाते थे ॥ ३१ ॥ हैहयाधिपति अर्जुनने देखा कि मेरी सेनाके सैनिक, उनके धनुष, ध्वजाएँ और ढाल भगवान् परशुराम के फरसे और बाणोंसे कट-कटकर खूनसे लथपथ रणभूमिमें गिर गये हैं, तब उसे बड़ा क्रोध आया और वह स्वयं भिडऩे के लिये आ धमका ॥ ३२ ॥ उसने एक साथ ही अपनी हजार भुजाओंसे पाँच सौ धनुषोंपर बाण चढ़ाये और परशुरामजीपर छोड़े। परंतु परशुरामजी तो समस्त शस्त्रधारियोंके शिरोमणि ठहरे। उन्होंने अपने एक धनुषपर छोड़े हुए बाणोंसे ही एक साथ सबको काट डाला ॥ ३३ ॥ अब हैहयाधिपति अपने हाथोंसे पहाड़ और पेड़ उखाडक़र बड़े वेगसे युद्धभूमिमें परशुरामजीकी ओर झपटा। परंतु परशुरामजीने अपनी तीखी धारवाले फरसे से बड़ी फुर्तीके साथ उसकी साँपोंके समान भुजाओंको काट डाला ॥ ३४ ॥ जब उसकी बाँहें कट गयीं, तब उन्होंने पहाडक़ी चोटी की तरह उसका ऊँचा सिर धड़ से अलग कर दिया। पिता के मर जानेपर उसके दस हजार लडक़े डरकर भग गये ॥ ३५ ॥
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गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड 1535 से