“चरितं रघुनाथस्य शतकोटिप्रविस्तरम् |
एकैकमक्षरं पुंसां महापातकनाशनम् ||”
( श्री रघुनाथ जी का चरित्र सौ करोड विस्तार वाला है और उसका एक एक अक्षर भी मनुष्यों के महान् पापों को नाश करने वाला है )
इस ब्लॉग का ध्येय, सनातन धर्म एवं भारतीय संस्कृति का प्रसार करना तथा सन्तों के दुर्लभ प्रवचनों को जन-जन तक पहुंचाने का है | हम केवल धार्मिक और आध्यात्मिक विषयों पर प्रामाणिक जानकारियों को ही प्रकाशित करते हैं। आत्मकल्याण तथा दुर्लभ-सत्संग हेतु हमसे जुड़ें और अपने सभी परिवारजनों और मित्रों को इसके लाभ की बात बताकर सबको जोड़ने का प्रयास करें | भगवान् में लगना और दूसरों को लगाना ‘परम-सेवा’ है | अतः इसका लाभ उठाना चाहिए |
॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥ श्रीमद्भागवतमहापुराण तृतीय स्कन्ध - छठा अध्याय..(पोस्ट०१) विराट् शरीर की उत्पत्ति ऋषिरुवाच - इति तासां स्वशक्तीना...