सोमवार, 13 मार्च 2023

“ नाहं वसामि वैकुंठे ........."

“ नाहं वसामि वैकुंठे योगिनां हृदये न च | 
मद्भक्ता यत्र गायन्ति तत्र तिष्ठामि नारद ||”  

.................... ( पद्मपुराण उ. १४/२३)

                                                               (भगवान् कहते हैं कि हे नारद !  मैं न तो  वैकुंठ में ही रहता हूँ और न योगियों के हृदय में ही रहता हूँ । मैं तो वहीं रहता हूँ, जहाँ प्रेमाकुल होकर मेरे भक्त मेरे नाम का कीर्तन किया करते हैं  ।  मैं सर्वदा लोगों के अन्तःकरण में विद्यमान रहता हूं)  | 

श्रद्धापूर्वक की गई प्रार्थना ही स्वीकार होती है । अतः भावना जितनी सच्ची, गहरी और पूर्ण होगी, उतना ही उसका सत्परिणाम होगा |


शनिवार, 11 मार्च 2023

गुरु को ढूंढना नहीं पड़ता !


।। जय श्री हरि ।।

श्रोता‒  आजकल दुनिया में ढूँढ़ने पर भी गुरु नहीं मिलता । मिलता है तो ठग मिलता है । हम गुरु ढूँढ़ने के लिये कई तीर्थों में गये, पर कोई मिला ही नहीं । आप कहते हैं कि जगद्गुरु कृष्ण को अपना गुरु मान लो । अगर आप यह घोषणा कर दें कि भाई ! आप लोग कृष्ण को ही गुरु मानो तो यह वहम ही मिट जाय ........!

स्वामीजी‒  वास्तव में गुरु को ढूँढ़ना नहीं पड़ता । फल पककर तैयार होता है तो तोता खुद उसको ढूँढ़ लेता है । ऐसे ही अच्छे गुरु खुद चेले को ढूँढ़ते हैं, चेले को ढूँढ़ना नहीं पड़ता । जैसे ही आप कल्याण के लिये तैयार हुए, गुरु फट आ टपकेगा ! फल पककर तैयार होता है तो तोता अपने-आप उसके पास आता है, फल तोते को नहीं बुलाता । ऐसे ही आप तैयार हो जाओ कि अब मुझे अपना कल्याण करना है तो गुरु अपने-आप आयेगा ।

‒गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित ‘सच्चा गुरु कौन ?’ पुस्तक से


शुक्रवार, 10 मार्च 2023

सच्चिदानंदरूपाय विश्वोत्पत्यादिहेतवे।तापत्रयविनाशाय श्रीकृष्णाय वयं नमः।।


प्रलयपयोधि में मार्कण्डेयजी को भगवद्विग्रह का दर्शन 

महामुनि मार्कण्डेय जी की अनन्य भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान् नारायण ने उनसे वर माँगने को कहा | मुनि ने कहा- हे प्रभो !  आपने कृपा करके अपने मनोहर रूप का दर्शन कराया है, फिर भी आपकी आज्ञा के अनुसार मैं आपकी माया का दर्शन करना चाहता हूँ | तब ‘तथास्तु’ कहकर भगवान् बदरीवन को चले गए | एक दिन मार्कण्डेयजी पुष्पभद्रा नदी के तट पर भगवान् की उपासना में तन्मय थे | उसी समय एकाएक उनके समक्ष प्रलयकाल का दृश्य उपस्थित हो गया | भगवान् की माया के प्रभाव से उस प्रलयकालीन समुद्र में भटकते-भटकते उन्हें करोड़ों वर्ष बीत गए और –--

“एकार्णव की उस अगाध जलराशि-बीच वटबृक्ष विशाल ,
दीख पडा उसकी शाखा पर बिछा पलंग एक तत्काल |
उसपर रहा विराज एक था कमलनेत्र एक सुन्दर बाल,
देख प्रफुल्ल कमल-मुख मुनि मार्कण्डेय हो गए चकित निहाल ||
...............(पदरत्नाकर)

---अकस्मात् एक दिन उन्हें उस प्रलय-पयोधि के मध्य एक विशाल वटवृक्ष दिखाई पडा | उस वटवृक्ष की एक शाखा पर एक सुन्दर-सा पलंग बिछा हुआ था | उस पलंग पर कमल-जैसे नेत्र वाला एक सुन्दर बालक विराज रहा था | उसके प्रफुल्लित कमल-जैसे मुख को देखकर मार्कण्डेय मुनि विस्मित तथा  सफल-मनोरथ हो गए |

---{कल्याण वर्ष ९०,सं०६..जून,२०१६}


बुधवार, 8 मार्च 2023

जय श्री सीताराम

“सीता अनुज समेत प्रभु नील जलद तनु स्याम।
मम हियँ बसहु निरंतर सगुनरूप श्री राम॥“

( हे नीले मेघ के समान श्याम शरीर वाले सगुण रूप श्री रामजी ! सीताजी और छोटे भाई लक्ष्मणजी सहित प्रभु (आप) निरंतर मेरे हृदय में निवास कीजिए )


मंगलवार, 7 मार्च 2023

एकश्लोकी रामायण

आदौ रामतपोवनादिगमनं हत्वा मृगं कांचनं
वैदेहीहरणं जटायुमरणं सुग्रीवसंभाषणम् ।
वालीनिर्दलनं समुद्रतरणं लंकापुरीदाहनं
पश्चाद्रावणकुंभकर्णहननमेतद्धि रामायणम् ॥


सोमवार, 6 मार्च 2023

रावणकृत शिव तांडव स्तोत्र

|| ॐ नम: शिवाय ||

जटाटवीगलज्जलप्रवाहपावितस्थले
गलेऽवलम्ब्य लम्बितां भुजंगतुंगमालिकाम्‌।
डमड्डमड्डमड्डमन्निनादवड्डमर्वयं
चकार चंडतांडवं तनोतु नः शिवः शिवम् ॥1॥
जटाकटाहसंभ्रमभ्रमन्निलिंपनिर्झरी ।
विलोलवीचिवल्लरी विराजमानमूर्द्धनि ।
धगद्धगद्धगज्ज्वलल्ललाटपट्टपावके
किशोरचंद्रशेखरे रतिः प्रतिक्षणं मम ॥2॥
धरा धरेंद्रनंदिनीविलासबंधुवंधुर-
स्फुरदृगंतसंतति प्रमोदमानमानसे ।
कृपाकटाक्षधारणी निरुद्धदुर्धरापदि
क्वचिद्दिगम्बरे मनो विनोदमेतु वस्तुनि ॥3॥
जटा भुजंगपिंगलस्फुरत्फणामणिप्रभा-
कदंबकुंकुमद्रवप्रलिप्तदिग्वधूमुखे ।
मदांध सिंधुरस्फुरत्वगुत्तरीयमेदुरे
मनो विनोदमद्भुतं बिभर्तु भूतभर्तरि ॥4॥
सहस्रलोचनप्रभृत्यशेषलेखशेखर-
प्रसूनधूलिधोरणीविधूसरांघ्रिपीठभूः ।
भुजंगराजमालया निबद्धजाटजूटकः
श्रियै चिराय जायतां चकोर बंधुशेखरः ॥5॥
ललाटचत्वरज्वलद्धनंजयस्फुलिङ्गभा-
निपीतपंचसायकं नमन्निलिंपनायकम्‌ ।
सुधामयूखलेखया विराजमानशेखरं
महाकपालि संपदे शिरोजटालमस्तु नः ॥6॥
करालभालपट्टिकाधगद्धगद्धगज्ज्वल-
द्धनंजयाहुतीकृतप्रचंडपंचसायके ।
धराधरेंद्र नंदिनी कुचाग्रचित्रपत्रक-
प्रकल्पनैकशिल्पिनि त्रिलोचने रतिर्मम ॥7॥
नवीनमेघमंडलीनिरुद्धदुर्धरस्फुर-
त्कुहूनिशीथिनीतमः प्रबंधबद्धकंधरः ।
निलिम्पनिर्झरि धरस्तनोतु कृत्ति सिंधुरः
कलानिधानबंधुरः श्रियं जगद्धुरंधरः ॥8॥
प्रफुल्लनीलपञ्कजप्रपंचकालिमप्रभा-
वलम्बिकंठकंदलीरुचिप्रबद्धकंधरम्‌
स्मरच्छिदं पुरच्छिंद भवच्छिदं मखच्छिदं
गजच्छिदांधकच्छिदं तमंतकच्छिदं भजे ॥9॥
अखर्वसर्वमंगला कलाकदम्बमञ्जरी-
रसप्रवाहमाधुरी विजृम्भणामधुव्रतम्‌ ।
स्मरान्तकं पुरान्तकं भवान्तकं मखान्तकं
गजान्तकान्धकान्तकं तमन्तकान्तकं भजे ॥10॥
जयत्वदभ्रविभ्रम भ्रमद्भुजङ्गमश्वस-
द्विनिर्गमत्क्रमस्फुरत्करालभालहव्यवाट्-
धिमिद्धिमिद्धिमिद्ध्वनन्मृदंगतुंगमंगल-
ध्वनिक्रमप्रवर्तित प्रचण्ड ताण्डवः शिवः ॥11॥
दृषद्विचित्रतल्पयोर्भुजंगमौक्तिकस्रजो-
र्गरिष्ठरत्नलोष्ठयोः सुहृद्विपक्षपक्षयोः ।
तृणारविन्दचक्षुषोः प्रजामहीमहेन्द्रयोः
समप्रवृत्तिक: कदा सदाशिवं भजाम्यहम् ॥12॥
कदा निलिंपनिर्झरी निकुञ्जकोटरे वसन्‌
विमुक्तदुर्मतिः सदा शिरःस्थमञ्जलिं वहन्‌ ।
विलोललोललोचनो ललामभाललग्नकः
शिवेति मंत्रमुच्चरन्‌ कदा सुखी भवाम्यहम्‌ ॥13॥
इमं हि नित्यमेव मुक्तमुक्तमोत्तमं स्तवं
पठन् स्मरन्‌ ब्रुवन्नरो विशुद्धमेति संततम्‌ ।
हरे गुरौ सुभक्तिमाशु याति नान्यथा गतिं
विमोहनं हि देहिनां सुशंकरस्य चिंतनम ॥14॥
पूजाऽवसानसमये दशवक्त्रगीतं
यः शम्भुपूजनमिदं पठति प्रदोषे ।
तस्य स्थिरां रथगजेंद्रतुरङ्गयुक्तां
लक्ष्मीं सदैव सुमुखीं प्रददाति शम्भुः ॥15॥

-------गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित पुस्तक “शिवस्तोत्ररत्नाकर” (कोड 1417) से


रविवार, 5 मार्च 2023

☼ श्रीराधाकृष्णाभ्यां नम: ☼


जैसे कठपुतली, नचानेवाले की इच्छा के अनुसार ही नाचती है, वैसे ही यह सारा संसार ईश्वर के अधीन है ॥ 

“ईशस्य हि वशे लोको योषा दारुमयी यथा ॥“

...........(श्रीमद्भागवत १.६.७)


शनिवार, 4 मार्च 2023

दस नामापराध (पोस्ट ०७)

।। ॐ श्री परमात्मने नम: ।।

‘धर्मान्तरैः साम्यम्’ (१०) भगवान्‌ के नाम की अन्य धर्मों के साथ तुलना करना अर्थात् गंगास्नान करो, चाहे नाम-जप करो । नाम-जप करो, चाहे गोदान कर दो । सब बराबर है । ऐसे किसीके बराबर नामकी बात कह दो तो नामका अपराध हो जायगा । नाम महाराज तो अकेला ही है । इसके समान दूसरा कोई साधन, धर्म है ही नहीं । भगवान् शंकरका नाम लो चाहे भगवान् विष्णुका नाम लो । ये नाम दूसरोंके समान नाम नहीं हैं । नामकी महिमा सबमें अधिक है, सबसे श्रेष्ठ है ।

इस प्रकार इन दस अपराधोंसे रहित होकर नाम लिया जाय तो वह बड़ी जल्दी उन्नति करनेवाला होता है । अगर नाम जपनेवालेसे इन अपराधोमेंसे कभी कोई अपराध बन भी जाय तो उसके लिये दूसरा प्रायश्चित्त करनेकी जरूरत नहीं है उसको तो ज्यादा नाम-जप ही करना चाहिये; क्योंकि नामापराध को दूर करनेवाला दूसरा प्रायश्चित्त है ही नहीं ।
नाम महाराजकी तो बहुत विलक्षण, अलौकिक महिमा है, जिस महिमाको स्वयं भगवान् भी कह नहीं सकते । इस वास्ते जो केवल नामनिष्ठ है; जो रात-दिन नाम-जपके ही परायण है, जिनका सम्पूर्ण जीवन नाम-जपमें ही लगा है;नाम महाराजके प्रभावसे उनके लिये इन अपराधों में से कोई भी अपराध लागू नहीं होता । ऐसे बहुत-से सन्त हुए हैं, जो शास्त्रों, पुराणों, स्मृतियों आदिको नहीं जानते थे, परन्तु नाम महाराजके प्रभावसे उन्होंने वेदों, पुराणों आदि के सिद्धान्त अपनी साधारण ग्रामीण भाषामें लिख लिये हैं । इस वास्ते सच्चे हृदयसे नाम में लग जाओ भाई; क्योंकि यह कलियुगका मौका है । बड़ा सुन्दर अवसर मिल गया है ।

नारायण ! नारायण !! नारायण !!!

---गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित, श्रद्धेय स्वामी रामसुखदास जी की “भगवन्नाम” पुस्तकसे


शुक्रवार, 3 मार्च 2023

दस नामापराध (पोस्ट ०६)

|| ॐ श्री परमात्मने नम: ||


‘नामास्तीति निषिद्धवृत्तिविहितत्यागौ’‒--
(८) निषिद्ध आचरण करना और (९) विहित कर्मोंका त्याग कर देना । 
जैसे, हम नाम-जप करते हैं तो झूठ-कपट कर लिया,दूसरों को धोखा दे दिया, चोरी कर ली, दूसरों का हक मार लिया तो इसमें क्या पाप लगेगा । अगर लग भी जाय तो नामके सामने सब खत्म हो जायगा; क्योंकि नाममें पापोंके नाश करनेकी अपार शक्ति है‒इस भावसे नामके सहारे निषिद्ध आचरण करना नामापराध है ।

भगवान्‌ का नाम लेते हैं । अब संध्या की क्या जरूरत है ? गायत्री की क्या जरूरत है ? श्राद्ध की क्या जरूरत है ? तर्पण की क्या जरूरत है ? क्या इस बात की जरूरत है ? इस प्रकार नामके भरोसे शास्त्र-विधि का त्याग करना भी नाम महाराज का अपराध है । यह नहीं छोड़ना चाहिये । अरे भाई ! यह तो कर देना चाहिये । शास्त्रने आज्ञा दी है । गृहस्थोंके लिये जो बताया है, वह करना चाहिये ।

नाम्नोऽस्ति यावती शक्तिः पापनिर्हरणे हरेः ।
तावत् कर्तुं न शक्नोति  पातकं पातकी जनः ॥

भगवान्‌ के नाम में इतने पापों के नाश करने की शक्ति है कि उतने पाप पापी कर नहीं सकता । लोग कहते हैं कि अभी पाप कर लो, ठगी-धोखेबाजी कर लो, पीछे राम-राम कर लेंगे तो नाम उसके पापों का नाश नहीं करेगा । क्योंकि उसने तो भगवन्नाम को पापों की वृद्धिमें हेतु बनाया है । भगवान्‌ के नाम के भरोसे पाप किये हैं, उसको नाम कैसे दूर करेगा ?

इस विषय में हमने एक कहानी सुनी है । एक कोई सज्जन थे । उनको अंग्रेजों से एक अधिकार मिल गया था कि जिस किसीको फाँसी होती हो, अगर वहाँ जाकर खड़ा रह जाय तो उसके सामने फाँसी नहीं दी जायगी‒ऐसी उसको छूट दी हुई थी । उसकी लड़की जिसको ब्याही थी, वह दामाद उद्दण्ड हो गया । चोरी भी करे, डाका भी डाले,अन्याय भी करे । उसकी स्त्री ने मना किया तो वह कहता है क्या बात है ? तेरा बाप, अपनी बेटी को विधवा होने देगा क्या ? उसका जवाँई हूँ ।
उस लड़की ने अपने पिताजी से कह दिया‒ ‘पिताजी ! आपके जवाँई तो आजकल उद्दण्ड हो गये हैं ? कहना मानते हैं नहीं । ससुर ने बुलाकर कहा कि ऐसा मत करो, तो कहने लगा‒‘जब आप हमारे ससुर हैं, तो मेरेको किस बातका भय है ।’ ऐसा होते-होते एक बार उसका जवाँई किसी अपराध में पकड़ा गया और उसे फाँसीकी सजा हो गयी । जब लडकी को पता लगा तो उसने आकर कहा‒पिताजी ! मैं विधवा हो जाऊँगी । पिताजी कहते हैं‒बेटी ! तू आज नहीं तो कल, एक दिन विधवा हो जायगी । उसकी रक्षा मैं कहाँतक करूँ । मेरेको अधिकार मिला है, वह दुरुपयोग करनेके लिये नहीं है । बेटी के मोह में आकर पाप का अनुमोदन करूँ, पाप की वृद्धि करूँ । यह बात नहीं होगी । वे नहीं गये ।

ऐसे ही नाम महाराजके भरोसे कोई पाप करेगा तो नाम-महाराज वहाँ नहीं जायँगे । उसका वज्रलेप पाप होगा,बड़ा भयंकर पाप होगा ।

नारायण !     नारायण !!     

 (शेष आगामी पोस्ट में)
---गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित, श्रद्धेय स्वामी रामसुखदास जी की “भगवन्नाम” पुस्तकसे


अधरं मधुरं वदनं मधुरं........

मधुराष्टकम्  


अधरं मधुरं वदनं मधुरं नयनं मधुरं हसितं मधुरम् | 
हृदयं मधुरं, गमनं मधुरं मधुराधिपतेरखिलं मधुरम् ||1||
वचनं मधुरं चरितं मधुरं वसनं मधुरं वलितं मधुरम्  |
चलितं मधुरं भ्रमितं मधुरं मधुराधिपतेरखिलं मधुरं ||2||
वेणुर्मधुरो रेणुर्मधुर: पाणिर्मधुर: पादौ मधुरौ |
नृत्यं मधुरं सख्यं मधुरं  मधुराधिपतेरखिलं मधुरम् ||3||
गीतं मधुरं पीतं मधुरं भुक्तं मधुरं सुप्तं मधुरम् |
रूपं मधुरं तिलकं मधुरं मधुराधिपतेरखिलं मधुरम् ||4||
करणं मधुरं तरणं मधुरं हरणं मधुरं रमणं मधुरम् |
वमितं मधुरं शमितं मधुरं मधुराधिपतेरखिलं मधुरम् ||5||
गुंजा मधुरा माला मधुरा यमुना मधुरा वीची मधुरा |
सलिलं मधुरं कमलं मधुरं मधुराधिपतेरखिलं मधुरम् ||6||
गोपी मधुरा लीला मधुरा  युक्तं मधुरं मुक्तं मधुरं 
दृष्टं मधुरं शिष्टं मधुरं मधुराधिपतेरखिलं मधुरम् ||7||
गोपा मधुरा गावो मधुरा यष्टिर्मधुरा सृष्टिर्मधुरा  |
दलितं मधुरं फलितं मधुरं मधुराधिपतेरखिलं मधुरम् ||8||

(श्री मधुराधिपति का सभी कुछ मधुर है | उनके अधर मधुर हैं,मुख मधुर है,नेत्र मधुर हैं,हास्य मधुर है,हृदय मधुर है और गति भी अतिमधुर है || उनके वचन मधुर हैं,चरित्र मधुर हैं,वस्त्र मधुर हैं, अंगभंगी मधुर है, चाल मधुर है और भ्रमण भी अतिमधुर है; श्री मधुराधिपति का सभी कुछ मधुर है|| उनका गान मधुर है, पान मधुर है,भोजन मधुर है,शयन मधुर है,रूप मधुर है और तिलक भी अतिमधुर है; श्री मधुराधिपति का सभी कुछ मधुर है|| उनका कार्य मधुर है,तैरना मधुर है,हरण मधुर है,रमण मधुर है,उद्गार मधुर है  और शांति भी अति मधुर है; श्री मधुराधिपति का सभी कुछ मधुर है|| उनकी गुंजा मधुर है,माला मधुर है, यमुना मधुर है, उसकी तरंगें मधुर हैं,उसका जल मधुर है और कमल भी अतिमधुर है; श्री मधुराधिपति का सभी कुछ मधुर है|| गोपियाँ मधुर हैं,उनकी लीला मधुर है,उनका संयोग मधुर है,वियोग मधुर है, निरीक्षण मधुर है और शिष्टाचार भी मधुर है; श्री मधुराधिपति का सभी कुछ मधुर है|| गोप मधुर हैं, गौएँ मधुर हैं,लकुटी मधुर है,रचना मधुर है.दलन मधुर है और उसका फल भी अतिमधुर है; श्री मधुराधिपति का सभी कुछ मधुर है||)

--गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित “स्तोत्र रत्नावली” पुस्तक से (पुस्तक कोड  1629)


श्रीमद्भागवतमहापुराण तृतीय स्कन्ध-पांचवां अध्याय..(पोस्ट१०)

॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥ श्रीमद्भागवतमहापुराण  तृतीय स्कन्ध - पाँचवा अध्याय..(पोस्ट१०) विदुरजीका प्रश्न  और मैत्रेयजीका सृष्टिक्रमवर्णन विश...