शुक्रवार, 17 मार्च 2023

।। जय श्री राम ।।

जिन्ह हरिभगति हृदयँ नहिं आनी । 
जीवत सव समान तेइ प्रानी ॥

( जिन्होंने भगवान की भक्ति को अपने हृदय में स्थान नहीं दिया, वे प्राणी जीते हुए ही मुर्दे के समान हैं )


गुरुवार, 16 मार्च 2023

राम जपु, राम जपु, राम जपु बावरे । राम के भजन बिनु, मुक्ति नहिं पाव रे ।।

।। जय श्री राम ।। 


दुनिया के लिये रोने में और भगवान्‌ के लिये रोने में बड़ा फर्क है । दुनिया के लिये रोते हैं तो आँसू गर्म होते हैं और भगवान्‌ के लिये रोते हैं तो आँसू ठण्डे होते हैं । संसारके लिये रोनेवाले के हृदय में जलन होती है और भगवान्‌ के लिये रोनेवाले के हृदय में ठण्डक होती है । भगवान्‌ के लिये रोना भी बड़ा मीठा होता है ! संसार की तरफ चलने में ही दुःख है । भगवान्‌ की तरफ चलने में सुख-ही-सुख है । भगवान् मिलें तो भी सुख, न मिलें तो भी सुख !

जैसे भगवान्‌ को हनुमान जी बहुत प्यारे हैं, ऐसे ही कलियुग में भजन करनेवाला भगवान्‌ को बहुत प्यारा है ।

.......गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित ‘बिन्दु में सिन्धु’ पुस्तक से


बुधवार, 15 मार्च 2023

श्रीजानकीवल्लभो विजयते !

“ सीता अनुज समेत प्रभु नील जलद तनु स्याम।
मम हियँ बसहु निरंतर सगुनरूप श्री राम॥“

( हे नीले मेघ के समान श्याम शरीर वाले सगुण रूप श्री रामजी ! सीताजी और छोटे भाई लक्ष्मणजी सहित प्रभु (आप) निरंतर मेरे हृदय में निवास कीजिए )


मंगलवार, 14 मार्च 2023

जय श्री राम

“तुम्हरिहि कृपाँ तुम्हहि रघुनंदन । जानहिं भगत भगत उर चंदन॥“

( हे रघुनंदन ! हे भक्तों के हृदय को शीतल करनेवाले चंदन ! आपकी ही कृपा से भक्त आपको जान पाते हैं )


सोमवार, 13 मार्च 2023

“ नाहं वसामि वैकुंठे ........."

“ नाहं वसामि वैकुंठे योगिनां हृदये न च | 
मद्भक्ता यत्र गायन्ति तत्र तिष्ठामि नारद ||”  

.................... ( पद्मपुराण उ. १४/२३)

                                                               (भगवान् कहते हैं कि हे नारद !  मैं न तो  वैकुंठ में ही रहता हूँ और न योगियों के हृदय में ही रहता हूँ । मैं तो वहीं रहता हूँ, जहाँ प्रेमाकुल होकर मेरे भक्त मेरे नाम का कीर्तन किया करते हैं  ।  मैं सर्वदा लोगों के अन्तःकरण में विद्यमान रहता हूं)  | 

श्रद्धापूर्वक की गई प्रार्थना ही स्वीकार होती है । अतः भावना जितनी सच्ची, गहरी और पूर्ण होगी, उतना ही उसका सत्परिणाम होगा |


शनिवार, 11 मार्च 2023

गुरु को ढूंढना नहीं पड़ता !


।। जय श्री हरि ।।

श्रोता‒  आजकल दुनिया में ढूँढ़ने पर भी गुरु नहीं मिलता । मिलता है तो ठग मिलता है । हम गुरु ढूँढ़ने के लिये कई तीर्थों में गये, पर कोई मिला ही नहीं । आप कहते हैं कि जगद्गुरु कृष्ण को अपना गुरु मान लो । अगर आप यह घोषणा कर दें कि भाई ! आप लोग कृष्ण को ही गुरु मानो तो यह वहम ही मिट जाय ........!

स्वामीजी‒  वास्तव में गुरु को ढूँढ़ना नहीं पड़ता । फल पककर तैयार होता है तो तोता खुद उसको ढूँढ़ लेता है । ऐसे ही अच्छे गुरु खुद चेले को ढूँढ़ते हैं, चेले को ढूँढ़ना नहीं पड़ता । जैसे ही आप कल्याण के लिये तैयार हुए, गुरु फट आ टपकेगा ! फल पककर तैयार होता है तो तोता अपने-आप उसके पास आता है, फल तोते को नहीं बुलाता । ऐसे ही आप तैयार हो जाओ कि अब मुझे अपना कल्याण करना है तो गुरु अपने-आप आयेगा ।

‒गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित ‘सच्चा गुरु कौन ?’ पुस्तक से


शुक्रवार, 10 मार्च 2023

सच्चिदानंदरूपाय विश्वोत्पत्यादिहेतवे।तापत्रयविनाशाय श्रीकृष्णाय वयं नमः।।


प्रलयपयोधि में मार्कण्डेयजी को भगवद्विग्रह का दर्शन 

महामुनि मार्कण्डेय जी की अनन्य भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान् नारायण ने उनसे वर माँगने को कहा | मुनि ने कहा- हे प्रभो !  आपने कृपा करके अपने मनोहर रूप का दर्शन कराया है, फिर भी आपकी आज्ञा के अनुसार मैं आपकी माया का दर्शन करना चाहता हूँ | तब ‘तथास्तु’ कहकर भगवान् बदरीवन को चले गए | एक दिन मार्कण्डेयजी पुष्पभद्रा नदी के तट पर भगवान् की उपासना में तन्मय थे | उसी समय एकाएक उनके समक्ष प्रलयकाल का दृश्य उपस्थित हो गया | भगवान् की माया के प्रभाव से उस प्रलयकालीन समुद्र में भटकते-भटकते उन्हें करोड़ों वर्ष बीत गए और –--

“एकार्णव की उस अगाध जलराशि-बीच वटबृक्ष विशाल ,
दीख पडा उसकी शाखा पर बिछा पलंग एक तत्काल |
उसपर रहा विराज एक था कमलनेत्र एक सुन्दर बाल,
देख प्रफुल्ल कमल-मुख मुनि मार्कण्डेय हो गए चकित निहाल ||
...............(पदरत्नाकर)

---अकस्मात् एक दिन उन्हें उस प्रलय-पयोधि के मध्य एक विशाल वटवृक्ष दिखाई पडा | उस वटवृक्ष की एक शाखा पर एक सुन्दर-सा पलंग बिछा हुआ था | उस पलंग पर कमल-जैसे नेत्र वाला एक सुन्दर बालक विराज रहा था | उसके प्रफुल्लित कमल-जैसे मुख को देखकर मार्कण्डेय मुनि विस्मित तथा  सफल-मनोरथ हो गए |

---{कल्याण वर्ष ९०,सं०६..जून,२०१६}


बुधवार, 8 मार्च 2023

जय श्री सीताराम

“सीता अनुज समेत प्रभु नील जलद तनु स्याम।
मम हियँ बसहु निरंतर सगुनरूप श्री राम॥“

( हे नीले मेघ के समान श्याम शरीर वाले सगुण रूप श्री रामजी ! सीताजी और छोटे भाई लक्ष्मणजी सहित प्रभु (आप) निरंतर मेरे हृदय में निवास कीजिए )


मंगलवार, 7 मार्च 2023

एकश्लोकी रामायण

आदौ रामतपोवनादिगमनं हत्वा मृगं कांचनं
वैदेहीहरणं जटायुमरणं सुग्रीवसंभाषणम् ।
वालीनिर्दलनं समुद्रतरणं लंकापुरीदाहनं
पश्चाद्रावणकुंभकर्णहननमेतद्धि रामायणम् ॥


सोमवार, 6 मार्च 2023

रावणकृत शिव तांडव स्तोत्र

|| ॐ नम: शिवाय ||

जटाटवीगलज्जलप्रवाहपावितस्थले
गलेऽवलम्ब्य लम्बितां भुजंगतुंगमालिकाम्‌।
डमड्डमड्डमड्डमन्निनादवड्डमर्वयं
चकार चंडतांडवं तनोतु नः शिवः शिवम् ॥1॥
जटाकटाहसंभ्रमभ्रमन्निलिंपनिर्झरी ।
विलोलवीचिवल्लरी विराजमानमूर्द्धनि ।
धगद्धगद्धगज्ज्वलल्ललाटपट्टपावके
किशोरचंद्रशेखरे रतिः प्रतिक्षणं मम ॥2॥
धरा धरेंद्रनंदिनीविलासबंधुवंधुर-
स्फुरदृगंतसंतति प्रमोदमानमानसे ।
कृपाकटाक्षधारणी निरुद्धदुर्धरापदि
क्वचिद्दिगम्बरे मनो विनोदमेतु वस्तुनि ॥3॥
जटा भुजंगपिंगलस्फुरत्फणामणिप्रभा-
कदंबकुंकुमद्रवप्रलिप्तदिग्वधूमुखे ।
मदांध सिंधुरस्फुरत्वगुत्तरीयमेदुरे
मनो विनोदमद्भुतं बिभर्तु भूतभर्तरि ॥4॥
सहस्रलोचनप्रभृत्यशेषलेखशेखर-
प्रसूनधूलिधोरणीविधूसरांघ्रिपीठभूः ।
भुजंगराजमालया निबद्धजाटजूटकः
श्रियै चिराय जायतां चकोर बंधुशेखरः ॥5॥
ललाटचत्वरज्वलद्धनंजयस्फुलिङ्गभा-
निपीतपंचसायकं नमन्निलिंपनायकम्‌ ।
सुधामयूखलेखया विराजमानशेखरं
महाकपालि संपदे शिरोजटालमस्तु नः ॥6॥
करालभालपट्टिकाधगद्धगद्धगज्ज्वल-
द्धनंजयाहुतीकृतप्रचंडपंचसायके ।
धराधरेंद्र नंदिनी कुचाग्रचित्रपत्रक-
प्रकल्पनैकशिल्पिनि त्रिलोचने रतिर्मम ॥7॥
नवीनमेघमंडलीनिरुद्धदुर्धरस्फुर-
त्कुहूनिशीथिनीतमः प्रबंधबद्धकंधरः ।
निलिम्पनिर्झरि धरस्तनोतु कृत्ति सिंधुरः
कलानिधानबंधुरः श्रियं जगद्धुरंधरः ॥8॥
प्रफुल्लनीलपञ्कजप्रपंचकालिमप्रभा-
वलम्बिकंठकंदलीरुचिप्रबद्धकंधरम्‌
स्मरच्छिदं पुरच्छिंद भवच्छिदं मखच्छिदं
गजच्छिदांधकच्छिदं तमंतकच्छिदं भजे ॥9॥
अखर्वसर्वमंगला कलाकदम्बमञ्जरी-
रसप्रवाहमाधुरी विजृम्भणामधुव्रतम्‌ ।
स्मरान्तकं पुरान्तकं भवान्तकं मखान्तकं
गजान्तकान्धकान्तकं तमन्तकान्तकं भजे ॥10॥
जयत्वदभ्रविभ्रम भ्रमद्भुजङ्गमश्वस-
द्विनिर्गमत्क्रमस्फुरत्करालभालहव्यवाट्-
धिमिद्धिमिद्धिमिद्ध्वनन्मृदंगतुंगमंगल-
ध्वनिक्रमप्रवर्तित प्रचण्ड ताण्डवः शिवः ॥11॥
दृषद्विचित्रतल्पयोर्भुजंगमौक्तिकस्रजो-
र्गरिष्ठरत्नलोष्ठयोः सुहृद्विपक्षपक्षयोः ।
तृणारविन्दचक्षुषोः प्रजामहीमहेन्द्रयोः
समप्रवृत्तिक: कदा सदाशिवं भजाम्यहम् ॥12॥
कदा निलिंपनिर्झरी निकुञ्जकोटरे वसन्‌
विमुक्तदुर्मतिः सदा शिरःस्थमञ्जलिं वहन्‌ ।
विलोललोललोचनो ललामभाललग्नकः
शिवेति मंत्रमुच्चरन्‌ कदा सुखी भवाम्यहम्‌ ॥13॥
इमं हि नित्यमेव मुक्तमुक्तमोत्तमं स्तवं
पठन् स्मरन्‌ ब्रुवन्नरो विशुद्धमेति संततम्‌ ।
हरे गुरौ सुभक्तिमाशु याति नान्यथा गतिं
विमोहनं हि देहिनां सुशंकरस्य चिंतनम ॥14॥
पूजाऽवसानसमये दशवक्त्रगीतं
यः शम्भुपूजनमिदं पठति प्रदोषे ।
तस्य स्थिरां रथगजेंद्रतुरङ्गयुक्तां
लक्ष्मीं सदैव सुमुखीं प्रददाति शम्भुः ॥15॥

-------गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित पुस्तक “शिवस्तोत्ररत्नाकर” (कोड 1417) से


श्रीमद्भागवतमहापुराण तृतीय स्कन्ध-छठा अध्याय..(पोस्ट०१)

॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥ श्रीमद्भागवतमहापुराण  तृतीय स्कन्ध - छठा अध्याय..(पोस्ट०१) विराट् शरीर की उत्पत्ति ऋषिरुवाच - इति तासां स्वशक्तीना...