#
श्रीहरि: #
श्रीगर्ग-संहिता
(गिरिराज खण्ड)
सातवाँ अध्याय (पोस्ट
01)
गिरिराज गोवर्धनसम्बन्धी तीर्थोंका वर्णन
श्रीबहुलाश्व उवाच -
कति मुख्यानि तीर्थानि गिरिराजे महात्मनि ।
एतद्ब्रूहि महायोगिन् साक्षात्त्वं दिव्यदर्शनः ॥१॥
श्रीनारद उवाच -
राजन् गोवर्धनः सर्वः सर्वतीर्थवरः स्मृतः ।
वृन्दावनं च गोलोकमुकुटोऽद्रिः प्रपूजितः ॥२॥
गोपगोपीगवां रक्षाप्रदः कृष्णप्रियो महान् ।
पूर्णब्रह्मातपत्रो यः यस्मात्तीर्थवरस्तु कः ॥३॥
इन्द्रयागं विनिर्भर्स्त्य सर्वैर्निजजनैः सह ।
यत्पूजनं समारेभे भगवान् भुवनेश्वरः ॥४॥
परिपूर्णतमः साक्षाच्छ्रीकृष्णो भगवान्स्वयम् ।
असंख्यब्रह्माण्डपतिर्गोलोकेशः परात्परः ॥५॥
यस्मिन्स्थितः सदा क्रीडामर्भकैः सह मैथिल ।
करोति तस्य माहात्म्यं वक्तुं नालं चतुर्मुखः ॥६॥
यत्र वै मानसी गंगा महापापौघनाशिनी ।
गोविन्दकुण्डं विशदं शुभं चन्द्रसरोवरम् ॥७॥
राधाकुण्डः कृष्णकुण्डो ललिताकुण्ड एव च ।
गोपालकुंडस्तत्रैव कुसुमाकर एव च ॥८॥
श्रीकृष्णमौलिसंस्पर्शान्मौलिचिह्ना शिलाऽभवत् ।
तस्या दर्शनमात्रेण देवमौलिर्भवेज्जनः ॥९॥
यस्यां शिलायां कृष्णेन चित्राणि लिखितानि च ।
अद्यापि चित्रिता पुण्या नाम्ना चित्रशिला गिरौ ॥१०॥
यां शिलामर्भकैः कृष्णो वादयन् क्रीडने रतः ।
वादनी सा शिला जाता महापापौघनाशिनी ॥११॥
यत्र श्रीकृष्णचन्द्रेण गोपालैः सह मैथिल ।
कृता वै कंदुकक्रीडा तत्क्षेत्रं कंदुकं स्मृतम् ॥१२॥
बहुलाश्वने पूछा – महायोगिन् ! आप साक्षात् दिव्यदृष्टिसे
सम्पन्न हैं; अतः यह बताइये कि महात्मा गिरिराजके आस-पास अथवा उनके ऊपर कितने मुख्य
तीर्थ हैं ? ॥ १ ॥
श्रीनारद बोले- राजन् । समूचा गोवर्धन पर्वत ही सब
तीर्थोंसे श्रेष्ठ माना जाता है। वृन्दावन साक्षात् गोलोक है और गिरिराजको उसका मुकुट
बताकर सम्मानित किया गया है। वह पर्वत गोपों, गोपियों तथा गौओंका रक्षक एवं महान् कृष्णप्रिय
है । जो साक्षात् पूर्णब्रह्मका छत्र बन गया, उससे श्रेष्ठ तीर्थ दूसरा कौन है। ॥ २-३ ॥
भुवनेश्वर एवं साक्षात् परिपूर्णतम भगवान् श्रीकृष्णने,
जो असंख्य ब्रह्माण्डोंके अधिपति, गोलोकके स्वामी तथा परात्पर पुरुष हैं, अपने समस्त
जनोंके साथ इन्द्रयागको धता बताकर जिसका पूजन आरम्भ किया, उस गिरिराजसे अधिक सौभाग्यशाली
कौन होगा । मैथिल ! जिस पर्वतपर स्थित हो भगवान् श्रीकृष्ण सदा ग्वाल-बालोंके साथ क्रीड़ा
करते हैं, उसकी महिमाका वर्णन करनेमें तो चतुर्मुख ब्रह्माजी भी समर्थ नहीं हैं ॥ ४-६ ॥
जहाँ बड़े-बड़े पापों की राशि का नाश करनेवाली मानसी गङ्गा विद्यमान हैं, विशद गोविन्दकुण्ड तथा
शुभ्र चन्द्रसरोवर शोभा पाते हैं, जहाँ राधाकुण्ड, कृष्णकुण्ड, ललिताकुण्ड गोपाल- कुण्ड
तथा कुसुमसरोवर सुशोभित हैं, उस गोवर्धनकी महिमाका कौन वर्णन कर सकता है। श्रीकृष्णके
मुकुटका स्पर्श पाकर जहाँकी शिला मुकुटके चिह्न से सुशोभित हो गयी, उस शिलाका दर्शन
करनेमात्रसे मनुष्य देवशिरोमणि हो जाता है। जिस शिलापर श्रीकृष्णने चित्र अङ्कित किये
हैं, वह चित्रित और पवित्र 'चित्रशिला' नामकी शिला आज भी गिरिराजके शिखरपर दृष्टिगोचर
होती है ॥ ७-१० ॥
बालकोंके साथ क्रीड़ा में संलग्न श्रीकृष्णने जिस शिलाको
बजाया था, वह महान् पापसमूहोंका नाश करनेवाली शिला 'वादिनी शिला' (बाजनी शिला) के नामसे
प्रसिद्ध हुई । मैथिल ! जहाँ श्रीकृष्णने ग्वाल-बालोंके साथ कन्दुक-क्रीड़ा की थी,
उसे 'कन्दुकक्षेत्र' कहते हैं ॥ ११-१२ ॥
शेष
आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीगर्ग-संहिता पुस्तक कोड 2260 से