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श्रीहरि: #
श्रीगर्ग-संहिता
(माधुर्यखण्ड)
ग्यारहवाँ अध्याय (पोस्ट 01)
लक्ष्मीजीकी सखियोंका वृषभानुओंके घरोंमें
कन्यारूपसे उत्पन्न होकर माघ मासके व्रतसे श्रीकृष्णको रिझाना और पाना
श्रीनारद उवाच -
अन्यासां चैव गोपीनां वर्णनं शृणु मैथिल ।
सर्वपापहरं पुण्यं हरिभक्तिविवर्द्धनम् ॥ १ ॥
नीतिविन्मार्गदः शुक्लः पतंगो दिव्यवाहनः ।
गोपेष्टश्च व्रजे राजन् जाता षड्वृषभानवः ॥ २ ॥
तेषां गृहेषु संजाता लक्ष्मीपतिवरात्प्रजाः ।
रमावैकुण्ठवासिन्यः श्रीसख्योऽपि समुद्रजाः ॥ ३ ॥
ऊर्ध्वं वैकुण्ठवासिन्यः तथाऽजितपदाश्रिताः ।
श्रीलोकाचलवासिन्यः श्रीसख्योऽपि समुद्रजाः ॥ ४ ॥
चिन्तयन्त्यः सदा श्रीमद्गोविन्दचरणांबुजम् ।
श्रीकृष्णस्य प्रसादार्थं ताभिर्माघव्रतं कृतम् ॥ ५ ॥
माघस्य शुक्लपंचम्यां वसन्तादौ हरिः स्वयम् ।
तासां प्रेमपरीक्षार्थं कृष्णो वै तद्गृहान्गतः ॥ ६ ॥
व्याघ्रचर्मांबरं बिभ्रन् जटामुकुटमंडितः ।
विभूतिधूसरो वेणुं वादयन् मोहयन् जगत् ॥ ७ ॥
तासां वीथीषु संप्राप्तिं वीक्ष्य गोप्योऽपि सर्वतः ।
आययुर्दर्शनं कर्तुं मोहिताः प्रेमविह्वलाः ॥ ८ ॥
अतीव सुन्दरं दृष्ट्वा योगिनं गोपकन्यकाः ।
ऊचुः परस्परं सर्वाः प्रेमानन्दसमाकुलाः ॥ ९ ॥
गोप्य ऊचुः -
कोऽयं शिशुर्नन्दसुताकृतिर्वा
कस्यापि पुत्रो धनिनो नृपस्य ।
नारीकुवाग्बाणविभिन्नमर्मा
जातो विरक्तो गतकृत्यकर्मा ॥ १० ॥
अतीव रम्यः सुकुमारदेहो
मनोजवद्विश्वमनोहरोऽयम् ।
अहो कथं जीवति चास्य माता
पिता च भार्या भगिनी विनैनम् ॥ ११ ॥
एवं ताः सर्वतो यूथीभूत्वा सर्वा व्रजांगनाः ।
पप्रच्छुस्तं योगिवरं विस्मिताः प्रेमविह्वलाः ॥ १२ ॥
श्रीनारदजी कहते हैं- मिथिलेश्वर ! अब दूसरी गोपियोंका
भी वर्णन सुनो, जो समस्त पापोंको हर लेनेवाला, पुण्यदायक तथा श्रीहरिके प्रति भक्ति-
भावकी वृद्धि करनेवाला है ॥ १ ॥
राजन् ! व्रजमें छः वृषभानु उत्पन्न हुए हैं, जिनके
नाम इस प्रकार हैं— नीतिवित्, मार्गद, शुक्ल, पतङ्ग, दिव्यावाहन तथा गोपेष्ट (ये नामानुरूप
गुणोंवाले थे) । उनके घरमें लक्ष्मीपति नारायणके वरदानसे जो कुमारियाँ उत्पन्न हुईं,
उनमें से कुछ तो रमा वैकुण्ठ वासिनी और कुछ समुद्रसे उत्पन्न हुई लक्ष्मीजीकी सखियाँ
थीं, कुछ अजितपदवासिनी और कुछ ऊर्ध्व वैकुण्ठलोकनिवासिनी देवियाँ थीं, कुछ लोकाचल-
वासिनी समुद्रसम्भवा लक्ष्मी - सहचरियाँ थीं । उन्होंने सदा श्रीगोविन्दके चरणारविन्दका
चिन्तन करते हुए माघ मासका व्रत किया। उस व्रतका उद्देश्य था - श्रीकृष्णको प्रसन्न
करना ॥ २–५ ॥
माघ मासके शुक्लपक्षकी पञ्चमी तिथिको, जो भावी वसन्तके
शुभागमनका सूचक प्रथम दिन है, उनके प्रेमकी परीक्षा लेनेके लिये श्रीकृष्ण उनके घरके
निकट आये। वे व्याघ्रचर्मका वस्त्र पहने, जटाके मुकुट बाँधे, समस्त अङ्गोंमें विभूति
रमाये योगीके वेषमें सुशोभित हो, वेणु बजाते हुए जगत् के लोगोंका मन मोह रहे थे। अपनी
गलियोंमें उनका शुभागमन हुआ देख सब ओरसे मोहित एवं प्रेम-विह्वल हुई गोपाङ्गनाएँ उस
तरुण योगीका दर्शन करनेके लिये आयीं । उन अत्यन्त सुन्दर योगीको देखकर प्रेम और आनन्दमें
डूबी हुई समस्त गोपकन्याएँ परस्पर कहने लगीं ॥ ६–९ ॥
गोपियाँ बोलीं- यह कौन बालक है, जिसकी आकृति नन्दनन्दनसे
ठीक-ठीक मिलती-जुलती है; अथवा यह किसी धनी राजाका पुत्र होगा, जो अपनी स्त्रीके कठोर
वचनरूपी बाणसे मर्म बिंध जानेके कारण घरसे विरक्त हो गया और सारे कृत्यकर्म छोड़ बैठा
है। यह अत्यन्त रमणीय है। इसका शरीर कैसा सुकुमार है ! यह कामदेवके समान सारे विश्वका
मन मोह लेनेवाला है । अहो ! इसकी माता, इसके पिता, इसकी पत्नी और इसकी बहिन इसके बिना
कैसे जीवित होंगी ? यह विचार करके सब ओरसे झुंड- की झुंड व्रजाङ्गनाएँ उनके पास आ गयीं
और प्रेमसे विह्वल तथा आश्चर्यचकित हो उन योगीश्वरसे पूछने लगीं ॥। १० - १२ ॥
शेष
आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीगर्ग-संहिता पुस्तक कोड 2260 से