मंगलवार, 11 सितंबर 2018

||श्री परमात्मने नम: || विवेक चूडामणि (पोस्ट.०७)



||श्री परमात्मने नम: ||
विवेक चूडामणि (पोस्ट.०७)
अधिकारी निरूपण
अधिकारिणमाशास्ते फलसिद्धिर्विशेषत: |
उपाया देशकालाद्या: संत्यस्मिन्सहकारिण: ||१४||
(विशेषत: अधिकारी को ही फल सिद्धि होती है; देश, काल आदि उपाय भी उसमें सहायक अवश्य होते हैं )
अतो विचार: कर्तव्यो जिज्ञासोरात्मवस्तुन: |
समासाद्य दयासिंधुं गुरुं ब्रह्मविदुत्तमम् || १५||
(अत: ब्रह्मवेत्ताओं में श्रेष्ठ दयासागर गुरुदेव की शरण में जाकर जिज्ञासु को आत्मतत्त्व का विचार करना चाहिए)
मेधावी पुरुषो विद्वानूहापोहविचक्षण: |
अधिकार्यात्मविद्यायामुक्तलक्षणलक्षित: ||१६||
(जो बुद्धिमान हो,विद्वान हो और तर्क-वितर्क में कुशल हो, ऐसे लक्षणों वाला पुरुष ही आत्मविद्या का अधिकारी होता है)
विवेकिनो विरक्तस्य शमादिगुणशालिन: |
मुमुक्षोरेव हि ब्रह्मजिज्ञासायोग्यता मता ||१७||
(जो सदसद्विवेकी, वैराग्यवान,शम-दमादि षट्सम्पत्तियुक्त और मुमुक्षु हो उसी में ब्रह्मजिज्ञासा की योग्यता मानी गयी है)
नारायण ! नारायण !!
शेष आगामी पोस्ट में
---गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित विवेक चूडामणि”..हिन्दी अनुवाद सहित(कोड-133) पुस्तकसे




सोमवार, 10 सितंबर 2018

||श्री परमात्मने नम: || विवेक चूडामणि (पोस्ट.०६)


||श्री परमात्मने नम: ||
विवेक चूडामणि (पोस्ट.०६)
ज्ञानोपलब्धि का उपाय
सम्यग्विचारत: सिद्धा रज्जुतत्त्वावधारणा |
भ्रान्त्योदितमहासर्पभयदु:खविनाशिनी ||१२||
(भलीभाँति विचार से शुद्ध हुआ रज्जुतत्त्व का निश्चय भ्रम से उत्पन्न हुए महान् सर्पभयरूपी दु:ख को नष्ट करने वाला होता है)
अर्थस्य निश्चयो दृष्टो विचारेण हितोक्तित: |
न स्नानेन न दानेन प्राणायामशतेन वा ||१३||
(कल्याणप्रद उक्तियों द्वारा विचार करने से वस्तु का निश्चय होता देखा जाता है; स्नान, दान अथवा सैंकडों प्राणायामों से नहीं)
नारायण ! नारायण !!
शेष आगामी पोस्ट में
---गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित “विवेक चूडामणि”..हिन्दी अनुवाद सहित(कोड-133) पुस्तकसे


गुरुवार, 6 सितंबर 2018

||श्री परमात्मने नम: || विवेक चूडामणि (पोस्ट.०५)


||श्री परमात्मने नम: || 

विवेक चूडामणि (पोस्ट.०५)

ज्ञानोपलब्धि का उपाय 

संन्यस्य सर्वकर्माणि भवबन्धविमुक्तये |
यत्यतां पण्डितैर्धीरैरात्माभ्यास उपस्थितै : ||१०||

(आत्माभ्यास में तत्पर हुए धीर विद्वानों को सम्पूर्ण कर्मों को त्याग कर भवबंधन की निवृत्ति के लिए प्रयत्न करना चाहिए)

चित्तस्य शुद्धये कर्म न तु वस्तूपलब्धये |
वस्तुसिद्धिविचारेण न किंचित् कर्मकोटिभि: ||११||

(कर्म चित्त की शुद्धि के लिए ही है, वस्तूपलब्धि (तत्त्वदृष्टि)- के लिए नहीं | वस्तु-सिद्धि तो विचार से ही होती है, करोड़ों कर्मों से कुछ भी नहीं हो सकता)

नारायण ! नारायण !!

शेष आगामी पोस्ट में 
---गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित “विवेक चूडामणि”..हिन्दी अनुवाद सहित(कोड-133) पुस्तकसे


||श्री परमात्मने नम :|| विवेक चूडामणि (पोस्ट.०४)




||श्री परमात्मने नम :|| 
विवेक चूडामणि (पोस्ट.०४)


ज्ञानोपलब्धि का उपाय 

अतो विमुक्त्यै प्रयतेत विद्वान्
संन्यस्तबाह्यार्थसुखस्पृह: सन् |
सन्तं महान्तं समुपेत्य देशिकं
तेनोपदिष्टार्थसमाहितात्मा ||||

(इसलिए विद्वान सम्पूर्ण बाह्य भोगों की इच्छा त्याग कर सन्त शिरोमणि गुरुदेव की शरण जाकर उनके उपदेश किये हुए विषय में समाहित होकर मुक्ति के लिए प्रयत्न करे)

उद्धरेदात्मनात्मानं मग्नं संसारवारिधौ |
योगारूढ़त्वमासाद्य सम्यग्दर्शननिष्ठया || ||

(और निरन्तर सत्य वस्तु आत्मा के दर्शन में स्थित रहता हुआ योगारूढ होकर संसार-समुद्र में डूबे हुए अपनी आत्मा का आप ही उद्धार करें)

नारायण ! नारायण !!

शेष आगामी पोस्ट में 
---गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित विवेक चूडामणि”..हिन्दी अनुवाद सहित(कोड-133) पुस्तकसे



||श्री परमात्मने नम :|| विवेक चूडामणि (पोस्ट.०३)


||श्री परमात्मने नम :||
विवेक चूडामणि (पोस्ट.०३)
ब्रह्मनिष्ठा का महत्त्व
वदन्तु शास्त्राणि यजन्तु देवान्
कुर्वन्तु कर्माणि भजन्ति देवता : |
आत्मैक्यबोधेन विना विमुक्ति-
र्न सिध्यति ब्रह्मशतान्तरेपि ||६||
( भले ही कोई शास्त्रों की व्याख्या करें, देवताओं का यजन करें, नाना शुभकर्म करें अथवा देवताओं को भजें, तथापि जब तक ब्रह्म और आत्मा की एकता का बोध नहीं होता, तब तक सौ ब्रह्माओं के बीत जाने पर भी [अर्थात् सौ कल्पों में भी] मुक्ति नहीं हो सकती)
अमृतत्वस्य नाशास्ति वित्तेनेत्येव हि श्रुति: |
ब्रवीति कर्मणो मुक्तेरहेतुत्वं स्फुटं यात: || ७||
(क्योंकि ‘धन से अमृतत्व की आशा नहीं है’ यह श्रुति ‘मुक्ति का हेतु कर्म नहीं है’, यह बात स्पष्ट बतलाती है)
नारायण ! नारायण !!
शेष आगामी पोस्ट में
---गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित “विवेक चूडामणि”..हिन्दी अनुवाद सहित(कोड-133) पुस्तकसे


||श्री परमात्मने नम :|| विवेक चूडामणि (पोस्ट.०२)



||श्री परमात्मने नम :||

विवेक चूडामणि (पोस्ट.०२)


लब्ध्वा कथञ्चिन्नरजन्म दुर्लभं
तत्रापि पुंस्त्वं श्रुतिपारदर्शनम् |
य: स्वात्ममुक्तौ न यतेत मूढ़धी:
स ह्यात्महा स्वं विनिहन्त्यसद्ग्रहात् || ||

(किसी प्रकार इस दुर्लभ मनुष्य जन्म को पाकर और उसमें भी, जिसमें श्रुति के सिद्धात का ज्ञान होता है ऐसा पुरुषत्व पाकर जो मूढ़बुद्धि अपने आत्मा की मुक्ति के लिए प्रयत्न नहीं करता, वह निश्चय ही आत्मघाती है; वह असत् में आस्था रखने के कारण अपने को नष्ट करता है)

इत: को न्वस्ति मूढात्मा यस्तु स्वार्थे प्रमाद्यति |
दुर्लभं मानुषं देहं प्राप्य तत्रापि पौरुषम् ||||

(दुर्लभ मनुष्य-देह और उसमें भी पुरुषत्व को पाकर जो स्वार्थ-साधन में प्रमाद करता है, उससे अधिक मूढ़ और कौन होगा ?)

नारायण ! नारायण !!

शेष आगामी पोस्ट में

---गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित विवेक चूडामणि”..हिन्दी अनुवाद सहित(कोड-133) पुस्तकसे



||श्री परमात्मने नम :|| विवेक चूडामणि (पोस्ट.०२)



||श्री परमात्मने नम :||

विवेक चूडामणि (पोस्ट.०२)


लब्ध्वा कथञ्चिन्नरजन्म दुर्लभं
तत्रापि पुंस्त्वं श्रुतिपारदर्शनम् |
य: स्वात्ममुक्तौ न यतेत मूढ़धी:
स ह्यात्महा स्वं विनिहन्त्यसद्ग्रहात् || ||

(किसी प्रकार इस दुर्लभ मनुष्य जन्म को पाकर और उसमें भी, जिसमें श्रुति के सिद्धात का ज्ञान होता है ऐसा पुरुषत्व पाकर जो मूढ़बुद्धि अपने आत्मा की मुक्ति के लिए प्रयत्न नहीं करता, वह निश्चय ही आत्मघाती है; वह असत् में आस्था रखने के कारण अपने को नष्ट करता है)

इत: को न्वस्ति मूढात्मा यस्तु स्वार्थे प्रमाद्यति |
दुर्लभं मानुषं देहं प्राप्य तत्रापि पौरुषम् ||||

(दुर्लभ मनुष्य-देह और उसमें भी पुरुषत्व को पाकर जो स्वार्थ-साधन में प्रमाद करता है, उससे अधिक मूढ़ और कौन होगा ?)

नारायण ! नारायण !!

शेष आगामी पोस्ट में

---गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित विवेक चूडामणि”..हिन्दी अनुवाद सहित(कोड-133) पुस्तकसे



बुधवार, 5 सितंबर 2018

जय सियाराम



"सीता अनुज समेत प्रभु नील जलद तनु स्याम।
मम हियँ बसहु निरंतर सगुनरूप श्री राम॥


( हे नीले मेघ के समान श्याम शरीर वाले सगुण रूप श्री रामजी ! सीताजी और छोटे भाई लक्ष्मणजी सहित प्रभु (आप) निरंतर मेरे हृदय में निवास कीजिए )



||श्री परमात्मने नम: || विवेक चूडामणि (पोस्ट.०१)

 
||श्री परमात्मने नम: ||
विवेक चूडामणि (पोस्ट.०१)

मंगलाचरण

सर्ववेदान्तसिद्धान्तगोचरं तमगोचरम् |
गोविन्दं परमानन्दं सद्गुरुं प्रणतोऽस्म्यहम् ||१||

( जो अज्ञेय होकर भी सम्पूर्ण वेदान्त के सिद्धांत-वाक्यों से जाने जाते हैं, उन परमानन्दस्वरूप सद्गुरुदेव श्री गोविन्द को मैं प्रणाम करता हूँ )

ब्रह्मनिष्ठा का महत्त्व

जन्तूनां नरजन्म दुर्लभमत: पुंस्त्वं ततो विप्रता
तस्माद्वैदिकधर्ममार्गपरता विद्वत्त्वमस्मात्परम् |
आत्मानात्मविवेचनं स्वनुभवो ब्रह्मात्मना संस्थिति-
र्मुक्तिर्नो शत्कोटिजन्मसु कृतै: पुन्यैर्विना लभ्यते || २||

( जीवों को प्रथम तो नरजन्म ही दुर्लभ है, उससे भी पुरुषत्व और उस से भी ब्राह्मणत्व मिलना कठिन है; ब्राह्मण होने से भी वैदिक धर्म का अनुगामी होना और उस से भी विद्वत्ता का होना कठिन है | [ यह सब कुछ होने पर भी] आत्मा और अनात्मा का विवेक, सम्यक् अनुभव , ब्रह्मात्मभाव से स्थिति और मुक्ति- ये तो करोड़ों जन्मों में किये हुए शुभ कर्मों के परिपाक के बिना प्राप्त हो ही नहीं सकते )

दुर्लभं त्रयमेवैतद्देवानुग्रहहेतुकम् |
मनुष्यत्वं मुमुक्षत्वं महापुरुष संश्रय : ||३||

(भगवत्कृपा ही जिनकी प्राप्ति का कारण है वे मनुष्यत्व, मुमुक्षत्व (मुक्त होने की इच्छा) और महान पुरुषों का संग- ये तीनों ही दुर्लभ हैं)

नारायण ! नारायण !!

शेष आगामी पोस्ट में
---गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित “विवेक चूडामणि”..हिन्दी अनुवाद सहित(कोड-133) पुस्तकसे


मंगलवार, 4 सितंबर 2018

भगवान् शंकराचार्य और विवेक चूडामणि (पोस्ट.०४) विवेक चूडामणि का संक्षिप्त परिचय

||श्री हरि ||

भगवान् शंकराचार्य और विवेक चूडामणि (पोस्ट.०४)

विवेक चूडामणि का संक्षिप्त परिचय

श्रीमद् आदिशंकराचार्य द्वारा रचित यद्यपि छोटे बड़े सैकड़ों ग्रन्थ हैं , पर विवेक-चूडामणि साधना और संक्षिप्त में सम्यक् ज्ञानोपलाब्धि की दृष्टि से सर्वोत्तम है | इसके अनुसार मनुष्य-जन्म पाकर संसार को विलोप करते हुए सर्वत्र शुद्ध भगवद्दृष्टि प्राप्त कर सर्वथा जीवन-मुक्त होकर कैवल्य-प्राप्ति ही सर्वोत्तम सिद्धि है | इसी बात को उन्होंने गीताभाष्य,ब्रह्मसूत्रभाष्य आदि में विस्तार से प्रतिपादित किया है | पर आचार्य कहते हैं कि यह अवस्था अनंत जन्मों के पुण्य के बिना प्राप्त नहीं होती –

“ मुक्तिर्नो शतकोटिजन्मसु कृतै: पुन्यैर्विना लभ्यते ||”...(वि०च०म०२)

यही बात गीता में भगवान् कृष्ण भी कहते हैं –
“अनेकजन्मसंसिद्धस्ततो याति परां गतिम् ||”....(गीता६.४५)

साधना की दृष्टि से भगवत्कृपा के द्वारा मोक्ष की इच्छा और तदर्थ प्रयत्न और सतसंग की प्राप्ति ये तीन दुर्लभ वस्तुएँ हैं | इनसे विवेक की प्राप्ति होकर जीवन्मुक्ति की उपलब्धि होती है | आचार्य का वचन है—

दुर्लभं त्रयमेवैतद्देवानुग्रहहेतुकम् |
मनुष्यत्वं मुमुक्षत्वं महापुरुष संश्रय :||…..(वि.चू.म.३)

गोस्वामी तुलसीदास जी की रचनाओं पर इनका स्पष्ट प्रभाव दीखता है --

बिनु सत्संग बिबेक न होई | राम कृपा बिनु सुलभ न होई ||
बिनु सत्संग भगति नहिं होई | ते तब मिलहिं द्रवै जब सोई ||
सत्संगति मुद मंगलमूला | सोइ फल सिधि सब साधन फूला ||
बड़े भाग मानुष तन पावा | सुर दुर्लभ पुरान श्रुति गावा ||
बड़े भाग पाइय सत्संगा | बिनहिं प्रयास होइ भव भंगा ||

लगता तो यहाँ तक है कि—“वंदे बोधमयं नित्यं गुरुं शंकररूपिणम्”—इत्यादि में निदर्शनालंकार से गोस्वामी जी ने शंकरावतार शंकराचार्य जी की ही वन्दना की है और उनके समग्र साहित्य पर आचार्य का महान प्रभाव है और इन्हीं कारणों से भाषा हिन्दी होने, भाव गंभीर होने के कारण मानस का विश्व में सर्वाधिक प्रचार हो गया |
विवेक-चूडामणि में नित्य-समाधि के लिए वैराग्य को ही सर्वोत्कृष्ट साधन माना गया है | आचार्य कहते हैं ---“अत्यन्तवैराग्यवत: समाधि:” अर्थात् अत्यंत विरक्त को तत्काल समाधि सिद्ध होती है | गीता में भी यही भाव व्यक्त हुआ है –

“तदा गन्तासि निर्वेदं श्रोतव्यस्य श्रुतस्य च ||
श्रुतिविप्रतिपन्ना ते यदा स्थास्यति निश्चला |
समाधावचला बुद्धिस्तदा योगमवाप्स्यसि ||”...(गीता २.५२-५३)

“विवेक चूडामणि” की सारी उपयोगिताओं को हृदयंगम करने के लिए ग्रन्थ का पर्यावलोकन आवश्यक है | उसे शनैः शनैः आप रसपूर्वक मनन करते हुए पूरा लाभ उठाएं | यही निवेदन है |

नारायण ! नारायण !!
---गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित “विवेक चूडामणि”..हिन्दी अनुवाद सहित(कोड-133) पुस्तकसे


श्रीमद्भागवतमहापुराण तृतीय स्कन्ध-पांचवां अध्याय..(पोस्ट०९)

॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥ श्रीमद्भागवतमहापुराण  तृतीय स्कन्ध - पाँचवा अध्याय..(पोस्ट०९) विदुरजीका प्रश्न  और मैत्रेयजीका सृष्टिक्रमवर्णन देव...