||श्री परमात्मने नम: ||
विवेक चूडामणि (पोस्ट.२३)
स्थूल शरीर का वर्णन
मज्जास्थिमेदःपलरक्तचर्म-
त्वगाह्वयैर्धातुभिरेभिरन्व ितम् ।
पादोरुक्षोभुजपृष्ठमस्तकै
रङ्गैरुपाङ्गैरुपयुक्तमेतत् ॥ ७४ ॥
अहंममेति प्रथितं शरीरं
मोहास्पदं स्थूलमितीर्यते बुधैः ।
( मज्जा,अस्थि,मेद,मांस,रक्त चर्म और त्वचा- इन सात धातुओं से बने हुए तथा चरण, जंघा, वक्ष:स्थल (छाती) भुजा, पीठ और मस्तक आदि अङ्गोपाङ्गों से युक्त “ मैं और मेरा “ रूप से प्रसिद्ध इस मोह के आश्रयरूप देह को विद्वान लोग स्थूल शरीर कहते हैं )
नभोनभस्वद्दहनाम्बुभूमयः
सूक्ष्माणि भूतानि भवन्ति तानि ॥ ७५ ॥
परस्परांशैर्मिलितानि भूत्वा
स्थूलानि च स्थूलशरीरहेतवः ।
मात्रास्तदीया विषया भवन्ति
शब्दादयः पञ्च सुखाय भोक्तुः ॥ ७६ ॥
(आकाश,वायु, तेज,जल और पृथिवी—ये सूक्ष्म भूत हैं | इनके अंश परस्पर मिलने से स्थूल होकर स्थूलशरीर के हेतु होते हैं और इन्हीं की तन्मात्राएं भोक्ता जीव के भोगरूप सुख के लिए शब्दादि पांच विषय हो जाती हैं)
य एषु मूढा विषयेषु बद्धा
रोगारुपाशेन सुदुर्दमेन ।
आयान्ति निर्यान्तध ऊर्ध्वमुच्चैः स्व-
कर्मदूतेन जवेन नीताः ॥ ७७ ॥
( जो मूढ़ इन विषयों में रागरूपी सुदृढ़ एवं विस्तृत बन्धन से बंध जाते हैं, वे अपने कर्मरूपी दूत के द्वारा वेग से प्रेरित होकर अनेक उत्तमाधम योनियों में आते जाते हैं)
नारायण ! नारायण !!
शेष आगामी पोस्ट में
---गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित “विवेक चूडामणि”..हिन्दी अनुवाद सहित(कोड-133) पुस्तकसे
—विवेक चूडामणि (पोस्ट.२३)
स्थूल शरीर का वर्णन
मज्जास्थिमेदःपलरक्तचर्म-
त्वगाह्वयैर्धातुभिरेभिरन्व
पादोरुक्षोभुजपृष्ठमस्तकै
रङ्गैरुपाङ्गैरुपयुक्तमेतत्
अहंममेति प्रथितं शरीरं
मोहास्पदं स्थूलमितीर्यते बुधैः ।
( मज्जा,अस्थि,मेद,मांस,रक्त चर्म और त्वचा- इन सात धातुओं से बने हुए तथा चरण, जंघा, वक्ष:स्थल (छाती) भुजा, पीठ और मस्तक आदि अङ्गोपाङ्गों से युक्त “ मैं और मेरा “ रूप से प्रसिद्ध इस मोह के आश्रयरूप देह को विद्वान लोग स्थूल शरीर कहते हैं )
नभोनभस्वद्दहनाम्बुभूमयः
सूक्ष्माणि भूतानि भवन्ति तानि ॥ ७५ ॥
परस्परांशैर्मिलितानि भूत्वा
स्थूलानि च स्थूलशरीरहेतवः ।
मात्रास्तदीया विषया भवन्ति
शब्दादयः पञ्च सुखाय भोक्तुः ॥ ७६ ॥
(आकाश,वायु, तेज,जल और पृथिवी—ये सूक्ष्म भूत हैं | इनके अंश परस्पर मिलने से स्थूल होकर स्थूलशरीर के हेतु होते हैं और इन्हीं की तन्मात्राएं भोक्ता जीव के भोगरूप सुख के लिए शब्दादि पांच विषय हो जाती हैं)
य एषु मूढा विषयेषु बद्धा
रोगारुपाशेन सुदुर्दमेन ।
आयान्ति निर्यान्तध ऊर्ध्वमुच्चैः स्व-
कर्मदूतेन जवेन नीताः ॥ ७७ ॥
( जो मूढ़ इन विषयों में रागरूपी सुदृढ़ एवं विस्तृत बन्धन से बंध जाते हैं, वे अपने कर्मरूपी दूत के द्वारा वेग से प्रेरित होकर अनेक उत्तमाधम योनियों में आते जाते हैं)
नारायण ! नारायण !!
शेष आगामी पोस्ट में
---गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित “विवेक चूडामणि”..हिन्दी अनुवाद सहित(कोड-133) पुस्तकसे