॥ ॐ नमो भगवते
वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
सप्तम
स्कन्ध – आठवाँ
अध्याय..(पोस्ट०८)
नृसिंहभगवान्
का प्रादुर्भाव,
हिरण्यकशिपु का वध
एवं
ब्रह्मादि देवताओं द्वारा भगवान् की स्तुति
संरम्भदुष्प्रेक्ष्यकराललोचनो
व्यात्ताननान्तं
विलिहन्स्वजिह्वया
असृग्लवाक्तारुणकेशराननो
यथान्त्रमाली
द्विपहत्यया हरिः ||३०||
नखाङ्कुरोत्पाटितहृत्सरोरुहं
विसृज्य
तस्यानुचरानुदायुधान्
अहन्समस्तान्नखशस्त्रपाणिभिर्दो-
र्दण्डयूथोऽनुपथान्सहस्रशः
||३१||
सटावधूता
जलदाः परापतन्
ग्रहाश्च
तद्दृष्टिविमुष्टरोचिषः
अम्भोधयः
श्वासहता विचुक्षुभु-
र्निर्ह्रादभीता
दिगिभा विचुक्रुशुः ||३२||
द्यौस्तत्सटोत्क्षिप्तविमानसङ्कुला
प्रोत्सर्पत
क्ष्मा च पदाभिपीडिता
शैलाः
समुत्पेतुरमुष्य रंहसा
तत्तेजसा
खं ककुभो न रेजिरे ||३३||
ततः
सभायामुपविष्टमुत्तमे
नृपासने
सम्भृततेजसं विभुम्
अलक्षितद्वैरथमत्यमर्षणं
प्रचण्डवक्त्रं
न बभाज कश्चन ||३४||
उस
समय उनकी क्रोधसे भरी विकराल आँखोंकी ओर देखा नहीं जाता था। वे अपनी लपलपाती हुई
जीभसे फैले हुए मुँहके दोनों कोने चाट रहे थे। खूनके छींटोंसे उनका मुँह और गरदनके
बाल लाल हो रहे थे। हाथीको मारकर गलेमें आँतोंकी माला पहने हुए मृगराजके समान उनकी
शोभा हो रही थी ॥ ३० ॥ उन्होंने अपने तीखे नखोंसे हिरण्यकशिपुका कलेजा फाडक़र उसे
जमीनपर पटक दिया। उस समय हजारों दैत्य-दानव हाथोंमें शस्त्र लेकर भगवान्पर प्रहार
करनेके लिये आये। पर भगवान्ने अपनी भुजारूपी सेनासे, लातोंसे और नखरूपी शस्त्रोंसे चारों ओर खदेड़-खदेडक़र उन्हें मार डाला ॥ ३१
॥
युधिष्ठिर
! उस समय भगवान् नृसिंहके गरदनके बालोंकी फटकारसे बादल तितर-बितर होने लगे। उनके
नेत्रोंकी ज्वालासे सूर्य आदि ग्रहोंका तेज फीका पड़ गया। उनके श्वासके धक्के से
समुद्र क्षुब्ध हो गये। उनके सिंहनादसे भयभीत होकर दिग्गज चिग्घाडऩे लगे ॥ ३२ ॥
उनके गरदन के बालोंसे टकराकर देवताओंके विमान अस्त-व्यस्त हो गये। स्वर्ग डगमगा
गया। उनके पैरोंकी धमकसे भूकम्प आ गया, वेगसे पर्वत उडऩे
लगे और उनके तेजकी चकाचौंधसे आकाश तथा दिशाओंका दीखना बंद हो गया ॥ ३३ ॥ इस समय
नृसिंहभगवान्का सामना करनेवाला कोई दिखायी न पड़ता था। फिर भी उनका क्रोध अभी
बढ़ता ही जा रहा था। वे हिरण्यकशिपुकी राज- सभामें ऊँचे सिंहासनपर जाकर विराज गये।
उस समय उनके अत्यन्त तेजपूर्ण और क्रोधभरे भयङ्कर चेहरेको देखकर किसीका भी साहस न
हुआ कि उनके पास जाकर उनकी सेवा करे ॥ ३४ ॥
शेष
आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड 1535 से