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रविवार, 17 मार्च 2024
श्रीमद्भागवतमहापुराण प्रथम स्कन्ध - आठवां अध्याय..(पोस्ट..०८)
शनिवार, 16 मार्च 2024
गर्गसंहिता-माहात्म्य तीसरा अध्याय
॥ श्रीराधाकृष्णाभ्यां
नमः ॥
गर्गसंहिता-माहात्म्य
तीसरा अध्याय
राजा प्रतिबाहु के
प्रति महर्षि शाण्डिल्य द्वारा गर्गसंहिता के
माहात्म्य और श्रवण-विधि का वर्णन
शाण्डिल्यने कहा- राजन् ! पहले भी तो तुम बहुत से उपाय
कर चुके हो, परंतु उनके परिणामस्वरूप एक भी कुलदीपक पुत्र उत्पन्न नहीं हुआ। इसलिये
अब तुम पत्नीके साथ शुद्ध हृदय होकर विधिपूर्वक 'गर्ग- संहिता' का श्रवण करो। राजन्
! यह संहिता धन, पुत्र और मुक्ति प्रदान करनेवाली है। यद्यपि यह एक छोटा-सा उपाय है,
तथापि कलियुगमें जो मनुष्य इस संहिता का श्रवण करते हैं, उन्हें
भगवान् विष्णु पुत्र, सुख आदि सब प्रकारकी सुख-सम्पत्ति दे देते हैं ॥ १- ३३ ॥
नरेश! गर्गमुनि की इस संहिताके
नवाह- पारायणरूप यज्ञसे मनुष्य सद्यःपावन हो जाते हैं उन्हें इस लोकमें परम सुखकी प्राप्ति
होती है तथा मृत्युके पश्चात् वे गोलोकपुरीमें चले जाते हैं। इस कथाको सुननेसे रोगग्रस्त
मनुष्य रोग समूहोंसे, भयभीत भयसे और बन्धनग्रस्त बन्धनसे मुक्त हो जाता है । निर्धनको
धन-धान्यकी प्राप्ति हो जाती है तथा मूर्ख शीघ्र ही पण्डित हो जाता है। इस कथाके श्रवणसे
ब्राह्मण विद्वान्, क्षत्रिय विजयी, वैश्य खजानेका स्वामी तथा
१. राजा, २.अमात्य, ३.राष्ट्र, ४.दुर्ग, ५.कोष,
६.दण्ड या बल और ७.सुहृद् — ये राज्यके
सात अङ्ग माने गये हैं शूद्र पापरहित हो जाता है। यद्यपि यह संहिता स्त्री- पुरुषोंके
लिये अत्यन्त दुर्लभ है, तथापि इसे सुनकर मनुष्य सफलमनोरथ हो जाता है। जो निष्कारण
अर्थात् कामनारहित होकर भक्तिपूर्वक मुनिवर गर्गद्वारा रचित इस सम्पूर्ण संहिताको सुनता
है, वह सम्पूर्ण विघ्नोंपर विजय पाकर देवताओंको भी पराजित करके श्रेष्ठ गोलोकधामको
चला जाता है । ४-७ ॥
राजन् ! गर्गसंहिताकी प्रबन्ध-कल्पना परम दुर्लभ है।
यह भूतलपर सहस्त्रों जन्मोंके पुण्यसे उपलब्ध होती है। श्रीगर्गसंहिताके श्रवणके लिये
दिनोंका कोई नियम नहीं है। इसे सर्वदा सुननेका विधान है। इसका श्रवण कलियुगमें भुक्ति
और मुक्ति प्रदान करनेवाला है। समय क्षणभङ्गुर है; पता नहीं कल क्या हो जाय; इसलिये
संहिता - श्रवणके लिये नौ दिनका नियम बतलाया गया है। भूपाल ! श्रोताको चाहिये कि वह
ज्ञानपूर्वक ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए एक बार एक अन्नका या हविष्यात्रका भोजन करे
अथवा फलाहार करें। उसे विधानके अनुसार मिष्टान्न, गेहूँ अथवा जौकी पूड़ी, सेंधा नमक,
कंद, दही और दूधका भोजन करना चाहिये। नृपश्रेष्ठ ! विष्णुभगवान्के अर्पित किये हुए
भोजनको ही प्रसादरूपमें खाना चाहिये। बिना भगवान्का भोग लगाये आहार नहीं ग्रहण करना
चाहिये । श्रद्धापूर्वक कथा सुननी चाहिये; क्योंकि यह कथा श्रवण सम्पूर्ण कामनाओंको
पूर्ण करनेवाला है । बुद्धिमान् श्रोताको चाहिये कि वह पृथ्वीपर शयन करे और क्रोध तथा
लोभको छोड़ दे। इस प्रकार गुरुके श्रीमुखसे कथा सुनकर वह सम्पूर्ण मनोवाञ्छित फल प्राप्त
कर लेता है। जो गुरु-भक्तिसे रहित, नास्तिक, पापी, विष्णुभक्तिसे रहित, श्रद्धाशून्य
तथा दुष्ट हैं, उन्हें कथाका फल नहीं मिलता ।। ८- १५ ।।
विद्वान् श्रोताको चाहिये कि वह अपने परिचित ब्राह्मण,
क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र – सभीको बुलाकर शुभ मुहूर्तमें अपने घरपर कथाको आरम्भ कराये
। भक्तिपूर्वक केलाके खंभोंसे मण्डपका निर्माण करे। सबसे पहले पञ्चपल्लवसहित जलसे भरा
हुआ कलश स्थापित करे। फिर पहले-पहल गणेशकी पूजा करके तत्पश्चात् नवग्रहोंकी पूजा करे।
तदनन्तर पुस्तककी पूजा करके विधिपूर्वक वक्ता की पूजा करे और
उन्हें सुवर्णकी दक्षिणा दे। असमर्थ होनेपर चाँदीकी भी दक्षिणा दी जा सकती है। पुनः
कलशपर श्रीफल रखकर मिष्टान्न निवेदन करना चाहिये । तत्पश्चात् भक्तिपूर्वक तुलसीदलोंद्वारा
भलीभाँति पूजन करके आरती उतारनी चाहिये। राजन् ! कथासमाप्तिके दिन श्रोताको प्रदक्षिणा
करनी चाहिये ।। १६- २० ॥
जो परस्त्रीगामी, धूर्त, वकवादी, शिवकी निन्दा करनेवाला,
विष्णु-भक्तिसे रहित और क्रोधी हो, उसे 'वक्ता' नहीं बनाना चाहिये। जो वाद-विवाद करने-
वाला, निन्दक, मूर्ख, कथामें विघ्न डालनेवाला और सबको दुःख देनेवाला हो, वह 'श्रोता'
निन्दनीय कहा गया है। जो गुरु सेवापरायण, विष्णुभक्त और कथाके अर्थको समझनेवाला है
तथा कथा सुननेमें जिसका मन लगता है, वह श्रोता श्रेष्ठ कहा जाता है। जो शुद्ध, आचार्य
कुलमें उत्पन्न, श्रीकृष्णका भक्त, बहुत-से शास्त्रोंका जानकार, सदा सम्पूर्ण मनुष्योंपर
दया करनेवाला और शङ्काओंका उचित समाधान करनेवाला हो, वह उत्तम वक्ता कहा गया है । २१
- २४॥
द्वादशाक्षर मन्त्रके जपद्वारा कथाके विघ्नोंका निवारण
करनेके लिये यथाशक्ति अन्यान्य ब्राह्मणोंका भी वरण कराना चाहिये। विद्वान् वक्ताको
तीन प्रहर (९ घंटे) तक उच्च स्वरसे कथा बाँचनी चाहिये। कथाके बीचमें दो बार विश्राम
लेना उचित है। उस समय लघुशङ्का आदिसे निवृत्त होकर जलसे हाथ-पैर धोकर पवित्र हो ले।
साथ ही कुल्ला करके मुख- शुद्धि भी कर लेनी चाहिये। राजन् ! नवें दिनकी पूजा-विधि विज्ञानखण्डमें
बतलायी गयी है। उस दिन उत्तम बुद्धिसम्पन्न श्रोता पुष्प, नैवेद्य और चन्दनसे पुस्तककी
पूजा करके पुनः सोना, चाँदी, वाहन, दक्षिणा, वस्त्र, आभूषण और गन्ध आदिसे वक्ताका पूजन
करे । नरेश ! तत्पश्चात् यथाशक्ति नौ सहस्र या नौ सौ या निन्यानबे अथवा नौ ब्राह्मणोंको
निमन्त्रित करके खीरका भोजन कराये। तब कथाके फलकी प्राप्ति होती है।
कथा-विश्रामके समय विष्णु-भक्तिसम्पन्न स्त्री-पुरुषोंके
साथ भगवन्नाम कीर्तन भी करना चाहिये। उस समय झाँझ, शङ्ख, मृदङ्ग आदि बाजोंके साथ-साथ
बीच-बीचमें जय-जयकार के शब्द भी बोलने चाहिये। जो श्रोता श्रीगर्गसंहिता की पुस्तक को सोने के सिंहासन पर स्थापित करके उसे वक्ता को दान कर देता है,
वह मरनेपर श्रीहरिको प्राप्त करता है। राजन् ! इस प्रकार मैंने तुम्हें गर्गसंहिताका
माहात्म्य बतला दिया, अब और क्या सुनना चाहते हो ? अरे, इस संहिताके श्रवणसे ही भुक्ति
और मुक्तिकी प्राप्ति देखी जाती है ।। २५-३४ ।।
इस प्रकार श्रीसम्मोहन तत्व में पार्वती-शंकर-संवाद में 'श्रीगर्गसंहिता के माहात्म्य तथा श्रवणविधि का वर्णन' नामक तीसरा
अध्याय पूरा हुआ ॥ ३ ॥
शेष
आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीगर्ग-संहिता पुस्तक कोड 2260 से
श्रीमद्भागवतमहापुराण प्रथम स्कन्ध - आठवां अध्याय..(पोस्ट..०७)
शुक्रवार, 15 मार्च 2024
गर्गसंहिता-माहात्म्य दूसरा अध्याय
गर्गसंहिता-माहात्म्य
दूसरा
अध्याय
नारदजीकी प्रेरणा ले गर्ग द्वारा संहिता
की रचना; संतान के लिये दुःखी राजा प्रतिबाहु के पास महर्षि शाण्डिल्य का आगमन
महादेवजीने कहा- देवर्षि नारदका कथन सुनकर महामुनि
गर्गाचार्य विनयसे झुककर हँसते हुए यों कहने लगे ॥ १ ॥
गर्गजी बोले- ब्रह्मन् ! आपकी कही हुई बात यद्यपि सब
तरहसे अत्यन्त कठिन है—यह स्पष्ट है, तथापि यदि आप कृपा करेंगे तो मैं उसका पालन करूँगा
।। २ ।।
सर्वमङ्गले । यों कहे जानेपर भगवान् नारद हर्षातिरेकसे
अपनी वीणा बजाते और गाते हुए ब्रह्मलोकमें चले गये । तदनन्तर गर्गाचलपर जाकर कविश्रेष्ठ
गर्गने इस महान् अद्भुत शास्त्रकी रचना की। इसमें देवर्षि नारद और राजा बहुलाश्वके
संवादका निरूपण हुआ है। यह श्रीकृष्णके विभिन्न विचित्र चरित्रोंसे परिपूर्ण तथा सुधा-सदृश
स्वादिष्ट बारह हजार श्लोकोंसे सुशोभित है। गर्गजीने श्रीकृष्णके जिस महान् चरित्रको
गुरुके मुखसे सुना था, अथवा स्वयं अपनी आँखों देखा था, वह सारा का सारा चरित्र इस संहितामें
सजा दिया है। वह कथा 'श्रीगर्गसंहिता' नामसे प्रचलित हुई। यह कृष्णभक्ति प्रदान करने
वाली है। इसके श्रवणमात्रसे सभी कार्य सिद्ध हो जाते हैं । ३ - ७ ॥
इस विषयमें एक प्राचीन इतिहासका वर्णन किया जाता है,
जिसके सुनते ही सम्पूर्ण पाप नष्ट हो जाते हैं। वज्रके पुत्र राजा प्रतिबाहु हुए, जो
प्रजा पालनमें तत्पर रहते थे। उस राजाकी प्यारी पत्नीका नाम मालिनी देवी था। राजा प्रतिबाहु
पत्नीके साथ कृष्णपुरी मथुरामें रहते थे। उन्होंने संतानकी प्राप्तिके लिये विधानपूर्वक
बहुत- सा यत्न किया। राजाने सुपात्र ब्राह्मणोंको बछड़े सहित बहुत-सी गायोंका दान दिया
तथा प्रयत्नपूर्वक भरपूर दक्षिणाओंसे युक्त अनेकों यज्ञोंका अनुष्ठान किया। भोजन और
धनद्वारा गुरुओं, ब्राह्मणों और देवताओंका पूजन किया, तथापि पुत्रकी उत्पत्ति न हुई।
तब राजा चिन्तासे व्याकुल हो गये। वे दोनों पति-पत्नी नित्य चिन्ता और शोकमें डूबे
रहते थे। इनके पितर (तर्पणमें) दिये हुए जलको कुछ गरम-सा पान करते थे। 'इस राजाके पश्चात्
जो हमलोगोंको तर्पणद्वारा तृप्त करेगा- ऐसा कोई दिखायी नहीं पड़ रहा है। इस राजाके
भाई-बन्धु, मित्र, अमात्य, सुहृद् तथा हाथी, घोड़े और पैदल सैनिक — किसीको भी इस बातकी
कोई चिन्ता नहीं है । ' - इस बातको याद करके राजाके पितृगण अत्यन्त दुःखी हो जाते थे।
इधर राजा प्रतिबाहु- के मनमें निरन्तर निराशा छायी रहती थी । ८ – १५
॥
(वे सोचते रहते थे कि ) 'पुत्रहीन मनुष्यका जन्म निष्फल
है । जिसके पुत्र नहीं है, उसका घर सूना- सा लगता है और मन सदा दुःखाभिभूत रहता है।
पुत्रके बिना मनुष्य देवता, मनुष्य और पितरोंके ऋणसे उऋण नहीं हो सकता। इसलिये बुद्धिमान्
मनुष्यको चाहिये कि वह सभी प्रकारके उपायोंका आश्रय लेकर पुत्र उत्पन्न करे । उसीकी
भूतलपर कीर्ति होती है और परलोकमें उसे शुभगति प्राप्त होती है। जिन पुण्यशाली पुरुषोंके
घरमें पुत्रका जन्म होता है, उनके भवनमें आयु, आरोग्य और सम्पत्ति सदा बनी रहती है।'
राजा अपने मनमें यों लगातार सोचा करते थे, जिससे उन्हें शान्ति नहीं मिलती थी। अपने
सिरके बालोंको श्वेत हुआ देखकर वे रात-दिन शोक में निमग्न रहते थे । १६ – २० ॥
एक समय मुनीश्वर शाण्डिल्य स्वेच्छापूर्वक विचरते हुए
प्रतिबाहुसे मिलनेके लिये उनकी राजधानी मधुपुरी (मथुरा) में आये। उन्हें देखकर राजा
सहसा अपने सिंहासनसे उठ पड़े और उन्हें आसन आदि देकर सम्मानित किया। पुनः मधुपर्क आदि
निवेदन करके हर्षपूर्वक उनका पूजन किया। राजाको उदासीन देखकर महर्षिको परम विस्मय हुआ।
तत्पश्चात् मुनीश्वरने स्वस्तिवाचनपूर्वक राजाका अभिनन्दन करके उनसे राज्यके सातों
अङ्गोंके विषयमें कुशल पूछी। तब नृपश्रेष्ठ प्रतिबाहु अपनी कुशल निवेदन करनेके लिये
बोले ॥ २१–२४॥
राजाने कहा – ब्रह्मन् ! पूर्वजन्मार्जित दोषके कारण
इस समय मुझे जो दुःख प्राप्त हैं, अपने उस कष्टके विषयमें मैं क्या कहूँ ? भला, आप-जैसे
ऋषियोंके लिये क्या अज्ञात है ? मुझे अपने राष्ट्र तथा नगरमें कुछ भी सुख दृष्टिगोचर
नहीं हो रहा है मैं क्या करूँ ? कहाँ जाऊँ ? किस प्रकार मुझे पुत्रकी प्राप्ति हो ।
'राजाके बाद जो हमारी रक्षा करे—ऐसा हमलोग किसीको नहीं देख रहे हैं।' इस बातको स्मरण
करके मेरी सारी प्रजा दुःखी है। ब्रह्मन् ! आप तो साक्षात् दिव्यदर्शी हैं; अतः मुझे
ऐसा उपाय बतलाइये, जिससे मुझे वंशप्रवर्त्तक दीर्घायु पुत्रकी प्राप्ति हो जाय ॥ २५
- २८॥
महादेवजी बोले- देवि ! उस दुःखी राजाके इस वचनको सुनकर
मुनिवर्य शाण्डिल्य राजाके दुःखको शान्त करते हुए-से बोले ॥ २९ ॥
इस प्रकार श्रीसम्मोहन-तन्त्रमें पार्वती
शंकर-संवाद में 'गर्गसंहिताका माहात्म्य' विषयक दूसरा अध्याय
पूरा हुआ ॥ २ ॥
शेष
आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीगर्ग-संहिता पुस्तक कोड 2260 से
श्रीगर्ग संहिता का संक्षिप्त परिचय
श्रीगर्ग
संहिता का संक्षिप्त परिचय
श्रीगर्ग
संहिता यदुकुल के महान् आचार्य महामुनि श्रीगर्ग की रचना है। यह सारी संहिता
अत्यन्त मधुर श्रीकृष्णलीला से परिपूर्ण है। श्रीराधाकी दिव्य माधुर्यभावमिश्रित
लीलाओं का इसमें विशद वर्णन है। श्रीमद्भागवत में जो कुछ सूत्ररूप में कहा गया है, गर्ग
संहिता में वही विशद वृत्तिरूप में वर्णित है। एक प्रकार से यह श्रीमद्भागवतोक्त
श्रीकृष्णलीला का महाभाष्य है । श्रीमद्भागवत में भगवान् श्रीकृष्णकी पूर्णता के
सम्बन्ध में महर्षि व्यास ने 'कृष्णस्तु भगवान् स्वयम्'
– इतना ही कहा है, महामुनि गर्गाचार्य ने-
यस्मिन्
सर्वाणि तेजांसि विलीयन्ते स्वतेजसि ।
तं वदन्ति
परे साक्षात् परिपूर्णतमं स्वयम् ॥
-- कहकर
श्रीकृष्णमें समस्त भागवत-तेजों के प्रवेश
का वर्णन करके श्रीकृष्ण की परिपूर्णतमता का वर्णन किया है।
श्रीकृष्णकी
मधुरलीलाकी रचना हुई है दिव्य 'रस' के द्वारा; उस रसका रास में प्रकाश हुआ है ।
श्रीमद्भागवत में उस रास के केवल एक बार का वर्णन पाँच अध्यायों में किया गया है;
किंतु इस गर्ग संहिता में वृन्दावनखण्ड में, अश्वमेधखण्डके
प्रभासमिलन के समय और उसी अश्वमेधखण्ड के दिग्विजय के अनन्तर लौटते समय-यों तीन
बार कई अध्यायों में उसका बड़ा सुन्दर वर्णन है। परम प्रेमस्वरूपा, श्रीकृष्ण से नित्य अभिन्नस्वरूपा शक्ति श्रीराधाजीके दिव्य आकर्षण से
श्रीमथुरानाथ एवं श्रीद्वारकाधीश श्रीकृष्ण ने बार-बार गोकुल में पधारकर
नित्यरासेश्वरी, नित्यनिकुञ्जेश्वरी के साथ महारासकी दिव्य
लीला की है— इसका विशद वर्णन है। इसके माधुर्यखण्ड में विभिन्न गोपियोंके बड़ा ही
सुन्दर वर्णन है । और भी बहुत-सी नयी-नयी कथाएँ हैं ।
यह संहिता
भक्त-भावुकों के लिये परम समादर की वस्तु है; क्योंकि
इसमें श्रीमद्भागवत के गूढ तत्त्वों का स्पष्ट रूप में उल्लेख है ।
----गीताप्रेस,
गोरखपुर
गुरुवार, 14 मार्च 2024
गर्गसंहिता-माहात्म्य पहला अध्याय
॥ श्रीराधाकृष्णाभ्यां
नमः ॥
गर्गसंहिता-माहात्म्य
पहला अध्याय
गर्गसंहिता के प्राकट्य का उपक्रम
जो श्रीकृष्णको ही देवता ( आराध्य) मानने- वाले वृष्णिवंशियोंके
आचार्य तथा कवियोंमें सर्वश्रेष्ठ हैं, उन महात्मा श्रीमान् गर्गजीको नित्य बारंबार
नमस्कार है ।। १ ।।
शौनकजी बोले- ब्रह्मन् ! मैंने आपके मुखसे पुराणोंका
उत्तम से उत्तम माहात्म्य विस्तारपूर्वक सुना है, वह श्रोत्रेन्द्रियके सुखकी वृद्धि
करनेवाला है। अब गर्गमुनिकी संहिताका जो साररूप माहात्म्य है, उसका प्रयत्नपूर्वक विचार
करके मुझसे वर्णन कीजिये। अहो! जिसमें श्रीराधा-माधवकी महिमाका विविध प्रकारसे वर्णन
किया गया है, वह गर्गमुनिकी भगवल्लीला सम्बन्धिनी संहिता धन्य है । २-४ ॥ सूतजी कहते
हैं- अहो शौनक ! इस माहात्म्य को मैंने नारदजीसे सुना है। इसे सम्मोहन - तन्त्रमें
शिवजीने पार्वतीसे वर्णन किया था। कैलास पर्वतके निर्मल शिखरपर, जहाँ अलकनन्दाके तटपर
अक्षयवट विद्यमान है, उसकी छायामें शंकरजी नित्य विराजते हैं। एक समयकी बात है, सम्पूर्ण
मङ्गलोंकी अधिष्ठात्री देवी गिरिजाने प्रसन्नतापूर्वक भगवान् शंकरसे अपनी मनभावनी बात
पूछी, जिसे वहाँ उपस्थित सिद्धगण भी सुन रहे थे ।। ५- ७ ॥
पार्वतीने पूछा - नाथ! जिसका आप इस प्रकार ध्यान करते
रहते हैं, उसके उत्कृष्ट चरित्र तथा जन्म कर्मके रहस्यका मेरे समक्ष वर्णन कीजिये ।
कष्टहारी शंकर ! पूर्वकालमें मैंने साक्षात् आपके मुखसे श्रीमान् गोपालदेवके सहस्रनामको
सुना है। अब मुझे उनकी कथा सुनाइये ।। ८-९ ॥
महादेवजी बोले- सर्वमङ्गले राधापति परमात्मा गोपालकृष्णकी
कथा गर्ग संहितामें सुनी जाती है ॥ १० ॥
पार्वतीने पूछा - शंकर पुराण और संहिताएँ तो अनेक हैं,
परंतु आप उन सबका परित्याग करके गर्ग- संहिताकी ही प्रशंसा करते हैं, उसमें भगवान् की किस लीलाका वर्णन है, उसे विस्तारपूर्वक बतलाइये । पूर्वकालमें किसके द्वारा प्रेरित
होकर गर्गमुनिने इस संहिताकी रचना की थी ? देव ! इसके श्रवणसे कौन- सा पुण्य होता है
तथा किस फलकी प्राप्ति होती है ? प्राचीनकालमें किन-किन लोगोंने इसका श्रवण किया है?
प्रभो ! यह सब मुझे बताइये ॥। ११ - १३ ॥
सूतजी कहते हैं- अपनी प्रिया पार्वतीका ऐसा कथन सुनकर
भगवान् महेश्वरका चित्त प्रसन्न हो गया। उस समय वे सभामें विराजमान थे। वहीं उन्होंने
गर्गद्वारा रचित कथाका स्मरण करके उत्तर देना आरम्भ किया ॥ १४ ॥
महादेवजी बोले- देवि ! राधा-माधवका तथा गर्ग संहिताका
भी विस्तृत माहात्म्य प्रयत्नपूर्वक श्रवण करो। यह पापका नाश करनेवाला है। जिस समय
भगवान् श्रीकृष्ण भूतलपर अवतीर्ण होनेका विचार कर रहे थे, उसी अवसरपर ब्रह्माके प्रार्थना
करनेपर उन्होंने पहले पहल राधासे अपने चरित्रका वर्णन किया था । तदनन्तर गोलोकमें शेषजीने
(कथा- श्रवणके लिये) प्रार्थना की। तब भगवान् ने प्रसन्नता- पूर्वक पुनः अपनी सम्पूर्ण
कथा उनके सम्मुख कह सुनायी। तत्पश्चात् शेषजीने ब्रह्माको और ब्रह्माने धर्मको यह संहिता
प्रदान की। सर्वमङ्गले ! फिर अपने पुत्र नर-नारायणद्वारा आग्रहपूर्ण प्रार्थना किये
जानेपर धर्मने एकान्तमें उनको इस अमृतस्वरूपिणी कथाका पान कराया था। पुनः नारायणने
धर्मके मुखसे जिस कृष्ण चरित्रका श्रवण किया था, उसे सेवापरायण नारदसे कहा । तदनन्तर
प्रार्थना किये जानेपर नारदने नारायणके मुखसे प्राप्त हुई सारी-की- सारी श्रीकृष्णसंहिता
गर्गाचार्यको कह सुनायी । यों श्रीहरिकी भक्तिसे सराबोर परम ज्ञानको सुनकर गर्गजीने
महात्मा नारदका पूजन किया। पर्वतनन्दिनि । ! तब नारदने भूत-भविष्य वर्तमान- तीनों कालोंके
ज्ञाता गर्गसे यों कहा ।। १५ – २२ ।।
नारदजी बोले - गर्गजी ! मैंने तुम्हें संक्षेपसे श्रीहरिकी
यशोगाथा सुनायी है। यह वैष्णवोंके लिये परम प्रिय है। अब तुम इसका विस्तारपूर्वक वर्णन
करो। विभो ! तुम ऐसे परम अद्भुत शास्त्रकी रचना करो, जो सबकी कामनाओंको पूर्ण करनेवाला,
निरन्तर कृष्णभक्तिकी वृद्धि करनेवाला तथा मुझे परम प्रिय लगे। विप्रेन्द्र ! मेरी
आज्ञा मानकर कृष्णद्वैपायन व्यासने श्रीमद्भागवतकी रचना की, जो समस्त शास्त्रों में
परम श्रेष्ठ है। ब्रह्मन् ! जिस प्रकार मैं भागवतकी रक्षा करता हूँ, उसी तरह तुम्हारे
द्वारा रचित शास्त्रको राजा बहुलाश्वको सुनाऊँगा । २३ - २६ ॥
इस प्रकार श्रीसम्मोहन-तन्त्र में पार्वती-शंकर-संवाद में 'श्रीगर्गसंहिता का माहात्म्य' विषयक प्रथम अध्याय पूरा हुआ ॥ १ ॥
शेष
आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीगर्ग-संहिता पुस्तक कोड 2260 से
श्रीमद्भागवतमहापुराण प्रथम स्कन्ध - आठवां अध्याय..(पोस्ट..०६)
बुधवार, 13 मार्च 2024
श्रीमद्भागवतमहापुराण प्रथम स्कन्ध - आठवां अध्याय..(पोस्ट..०५)
मंगलवार, 12 मार्च 2024
श्रीमद्भागवतमहापुराण प्रथम स्कन्ध - आठवां अध्याय..(पोस्ट..०४)
सोमवार, 11 मार्च 2024
श्रीमद्भागवतमहापुराण प्रथम स्कन्ध - आठवां अध्याय..(पोस्ट..०३)
श्रीमद्भागवतमहापुराण तृतीय स्कन्ध-पांचवां अध्याय..(पोस्ट१२)
॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥ श्रीमद्भागवतमहापुराण तृतीय स्कन्ध - पाँचवा अध्याय..(पोस्ट१२) विदुरजीका प्रश्न और मैत्रेयजीका सृष्टिक्रमवर्णन तत्...
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सच्चिदानन्द रूपाय विश्वोत्पत्यादि हेतवे | तापत्रय विनाशाय श्री कृष्णाय वयं नुमः श्रीमद्भागवत अत्यन्त गोपनीय — रहस्यात्मक पुरा...
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॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥ श्रीमद्भागवतमहापुराण एकादश स्कन्ध— पाँचवाँ अध्याय..(पोस्ट०२) भक्तिहीन पुरुषों की गति और भगवान् की पूजाविधि ...
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हम लोगों को भगवान की चर्चा व संकीर्तन अधिक से अधिक करना चाहिए क्योंकि भगवान् वहीं निवास करते हैं जहाँ उनका संकीर्तन होता है | स्वयं भगवान...
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|| ॐ नमो भगवते वासुदेवाय || “ सदा सेव्या सदा सेव्या श्रीमद्भागवती कथा | यस्या: श्रवणमात्रेण हरिश्चित्तं समाश्रयेत् ||” श्रीमद्भाग...
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