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श्रीहरि: #
श्रीगर्ग-संहिता
(माधुर्यखण्ड)
नौवाँ
अध्याय
पूर्वकाल में एकादशी का व्रत करके मनोवाञ्छित फल पानेवाले पुण्यात्माओं का
परिचय तथा यज्ञसीतास्वरूपा गोपिकाओं को एकादशी व्रतके प्रभाव से श्रीकृष्ण- सांनिध्य की प्राप्ति
गोप्य ऊचुः -
वृषभानुसुते सुभ्रु सर्वशास्त्रार्थपारगे ।
विडंबयंती त्वं वाचा वाचं वाचस्पतेर्मुने ॥ १ ॥
एकादशीव्रतं राधे केन केन पुरा कृतम् ।
तद्ब्रूहि नो विशेषेण त्वं साक्षात् ज्ञानशेवधिः ॥ २ ॥
श्रीराधोवाच -
आदौ देवैः कृतं गोप्यो वरमेकादशीव्रतम् ।
भ्रष्टराज्यस्य लाभार्थं दैत्यानां नाशनाय च ॥ ३ ॥
वैशंतेन पुरा राज्ञा कृतमेकादशीव्रतम् ।
स्वपितुस्तारणार्थाय यमलोकगतस्य च ॥ ४ ॥
अक्स्माल्लुंपकेनापि ज्ञातित्यक्तेन पापिना ।
एकादशी कृता येन राज्यं लेभे स लुंपकः ॥ ५ ॥
भद्रावत्यां केतुमता कृतमेकादशीव्रतम् ।
पुत्रहीनेन सद्वाक्यात्पुत्रं लेभे स मानवः ॥ ६ ॥
ब्राह्मण्यै देवपत्नीभिर्दत्तमेकादशीव्रतम् ।
तेन लेभे स्वर्गसौख्यं धनधान्यं च मानुषी ॥ ७ ॥
पुष्पदंतीमाल्यवंतौ शक्रशापात्पिशाचताम् ।
प्राप्तौ कृतं व्रतं ताभ्यां पुनर्गन्धर्वतां गतौ ॥ ८ ॥
पुरा श्रीरामचन्द्रेण कृतमेकादशीव्रतम् ।
समुद्रे सेतुबंधार्थं रावणस्य वधाय च ॥ ९ ॥
लयांते च समुत्पन्ना धातृवृक्षतले सुराः ।
एकादशीव्रतं चक्रुः सर्वकल्याणहेतवे ॥ १० ॥
व्रतं चकार मेधावी द्वादश्याः पितृवाक्यतः ।
अप्सरःस्पर्शदोषेण मुक्तोऽभून्निर्मलद्युतिः ॥ ११ ॥
गंधर्वो ललितः पत्न्या गतः शापात्स रक्षताम् ।
एकादशीव्रतेनापि पुनर्गंधर्वतां गतः ॥ १२ ॥
एकादशीव्रतेनापि मांधाता स्वर्गतिं गतः ।
सगरस्य ककुत्स्थश्च मुचकुन्दो महामतिः ॥ १३ ॥
धुंधुमारादयश्चान्ये राजानो बहवस्तथा ।
ब्रह्मकपालनिर्मुक्तो बभूव भगवान्भवः ॥ १४ ॥
धृष्टबुद्धिर्वैश्यपुत्रो ज्ञातित्यक्तो महाखलः ।
एकादशीव्रतं कृत्वा वैकुण्ठं स जगाम ह ॥ १५ ॥
राज्ञा रुक्मांगदेनापि कृतमेकादशीव्रतम् ।
तेन भूमण्डलं भुक्त्वा वैकुण्ठं सपुरो ययौ ॥ १६ ॥
अंबरीषेण राज्ञाऽपि कृतमेकादशीव्रतम् ।
नास्पृशद्ब्रह्मशापोऽपि यो न प्रतिहतः क्वचित् ॥ १७ ॥
हेममाली नाम यक्षः कुष्ठी धनदशापतः ।
एकादशीव्रतं कृत्वा चन्द्रतुल्यो बभूव ह ॥ १८ ॥
महीजिता नृपेणापि कृतमेकादशीव्रतम् ।
तेन पुत्रं शुभं लब्ध्वा वैकुण्ठं स जगाम ह ॥ १९ ॥
हरिश्चन्द्रेण राज्ञाऽपि कृतमेकादशीव्रतम् ।
तेन लब्ध्वा महीराज्यं वैकुण्ठं सपुरो ययौ ॥ २० ॥
श्रीशोभनो नाम पुरा कृते युगे
जामातृकोऽभून्मुचुकुन्दभूभृतः ।
एकादशीं यः समुपोष्य भारते
प्राप्तः स दैवैः किल मंदराचले ॥ २१
॥
अद्यापि राज्यं कुरुते कुबेरव-
द्राज्ञा युतोऽसौ किल चन्द्रभागया ।
एकादशी सर्वतिथीश्वरीं परां
जानीथ गोप्यो न हि तत्समाऽन्या ॥ २२
॥
श्रीनारद उवाच -
इति राधामुखाच्छ्रुत्वा यज्ञसीताश्च गोपिकाः ।
एकादशीव्रतं चक्रुर्विधिवत्कृष्णलालसाः ॥ २३ ॥
एकादशीव्रतेनापि प्रसन्नः श्रीहरिः स्वयम् ।
मार्गशीर्षे पूर्णिमायां रासं ताभिश्चकार ह ॥ २४ ॥
गोपियाँ बोलीं- सम्पूर्णशास्त्रों के
अर्थज्ञान में पारंगत सुन्दरी वृषभानु-नन्दिनी ! तुम अपनी वाणीसे
बृहस्पति मुनि की वाणीका अनुकरण करती हो। राधे ! यह एकादशी व्रत
पहले किसने किया था ? यह हमें विशेषरूप से बताओ; क्योंकि तुम
साक्षात् ज्ञानकी निधि हो ।। १-२ ॥
श्रीराधाने कहा- गोपियो ! सबसे पहले देवताओंने अपने
छीने गये राज्यकी प्राप्ति तथा दैत्योंके विनाशके लिये एकादशीव्रतका अनुष्ठान किया
था। राजा वैशन्तने पूर्वकालमें यमलोकगत पिताके उद्धारके लिये एकादशी व्रत किया था ।
लुम्पक नामके एक राजाको उसके पापके कारण कुटुम्बी-जनोंने अकस्मात् त्याग दिया था ।
लुम्पकने भी एकादशीका व्रत किया और उसके प्रभाव से अपना खोया
हुआ राज्य प्राप्त कर लिया। भद्रावती नगरीमें पुत्रहीन राजा केतुमान्ने संतों के कहने से एकादशी व्रतका अनुष्ठान किया और उन्हें
पुत्र की प्राप्ति हो गयी। एक ब्राह्मणी को देवपत्नियों ने
एकादशी व्रतका पुण्य प्रदान किया जिससे उस मानवीने धन-धान्य तथा स्वर्ग का सुख प्राप्त किया । पुष्पदन्ती और माल्यवान्
— दोनों इन्द्रके शापसे पिशाचभावको प्राप्त हो गये थे। उन दोनोंने एकादशी का व्रत किया और उसके पुण्य प्रभाव से उन्हें पुनः गन्धर्वत्व की
प्राप्ति हो गयी । पूर्वकालमें श्रीरामचन्द्रजीने समुद्रपर सेतु बाँधने तथा रावण- का
वध करनेके लिये एकादशीका व्रत किया था। प्रलयके अन्तमें उत्पन्न हुए आँवलेके वृक्षके
नीचे बैठकर देवताओंने सबके कल्याण के लिये एकादशी- का व्रत किया
था। पिताकी आज्ञासे मेधावीने एकादशीका व्रत किया, जिससे वे अप्सराके साथ सम्पर्कके
दोषसे मुक्त हो निर्मल तेजसे सम्पन्न हो गये । ललित नामक गन्धर्व अपनी पत्नीके साथ
ही शापवश राक्षस हो गया था, किंतु एकादशी व्रतके अनुष्ठानसे उसने पुनः गन्धर्वत्व प्राप्त
कर लिया । एकादशीके व्रतसे ही राजा मांधाता, सगर, ककुत्स्थ और महामति मुचुकुन्द पुण्यलोकको
प्राप्त हुए। धुन्धुमार आदि अन्य बहुत-से राजाओंने भी एकादशी व्रतके प्रभाव से ही सद्गति प्राप्त की तथा भगवान् शंकर ब्रह्मकपाल से मुक्त हुए। कुटुम्बीजनों से परित्यक्त महादुष्ट
वैश्य - पुत्र धृष्टबुद्धि एकादशीव्रत करके ही वैकुण्ठलोक में
गया था । राजा रुक्माङ्गद ने भी एकादशी का व्रत किया था और उसके प्रभाव से भूमण्डल का राज्य भोगकर वे पुरवासियोंसहित वैकुण्ठलोक में
पधारे थे। राजा अम्बरीषने भी एकादशीका व्रत किया था, जिससे कहीं भी प्रतिहत न होनेवाला
ब्रह्मशाप उन्हें छू न सका । हेममाली नामक यक्ष कुबेर के शापसे
कोढ़ी हो गया था, किंतु एकादशी व्रतका अनुष्ठान करके वह पुनः चन्द्रमाके समान कान्तिमान्
हो गया। राजा महीजित्ने भी एकादशीका व्रत किया था, जिसके प्रभावसे सुन्दर पुत्र प्राप्तकर
वे स्वयं भी वैकुण्ठगामी हुए। राजा हरिश्चन्द्र ने भी एकादशीका व्रत किया था, जिससे
पृथ्वीका राज्य भोगकर वे अन्तमें पुरवासियोंसहित वैकुण्ठ धामको गये । पूर्वकालके सत्ययुग में राजा मुचुकुन्द का दामाद शोभन भारतवर्ष में
एकादशीका उपवास करके उसके पुण्य प्रभाव से देवताओंके साथ मन्दराचलपर
चला गया । वह आज भी वहाँ अपनी रानी चन्द्रभागा
के साथ कुबेर की भाँति राज्यसुख भोगता है । गोपियो ! एकादशी को सम्पूर्ण तिथियों की परमेश्वरी समझो । उसकी समानता करनेवाली दूसरी
कोई तिथि नहीं है । ३ - २२ ॥
श्रीनारदजी कहते हैं- राजन् ! श्रीराधाके मुख- से इस
प्रकार एकादशीकी महिमा सुनकर यज्ञसीता- स्वरूपा गोपिकाओंने श्रीकृष्ण दर्शनकी लालसासे
विधिपूर्वक एकादशी व्रतका
अनुष्ठान किया। एकादशी व्रतसे प्रसन्न हुए साक्षात्
भगवान् श्रीहरिने मार्गशीर्ष मासकी पूर्णिमाकी रातमें उन सबके साथ रास किया ।। २३-२४
॥
इस प्रकार श्रीगर्गसंहितामें माधुर्यखण्डके
अन्तर्गत नारद - बहुलाश्व-संवादमें यज्ञसीतोपाख्यानके प्रसङ्गमें 'एकादशीका माहात्म्य'
नामक नवाँ अध्याय पूरा हुआ ९ ॥
शेष
आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीगर्ग-संहिता पुस्तक कोड 2260 से