शनिवार, 6 अप्रैल 2019

श्रीदुर्गासप्तशती श्रीदुर्गामानस पूजा (पोस्ट १४)


श्रीदुर्गादेव्यै नमो नम:

अथ श्रीदुर्गासप्तशती
श्रीदुर्गामानस पूजा (पोस्ट १४)

लवङ्गकलिकोज्ज्वलं बहुलनागवल्लीदलं
सजातिफलकोमलं सघनसारपूगीफलम् ।
सुधामधुरमाकुलं रुचिररत्नपात्रस्थितं
गृहाण मुखपङ्कजे स्फुरितमम्ब ताम्बूलकम् ॥ १४॥

माँ! सुन्दर रत्नमय पात्र में सजाकर रखा हुआ यह दिव्य ताम्बूल  अपने मुख में ग्रहण करो । लवंग की कली चुभोकर इसके बीड़े लगाये गये हैं, अतः बहुत सुन्दर जान पड़ते हैं, इसमें बहुत-से पान के पत्तों का उपयोग किया गया है। इन सब बीड़ों में कोमल जावित्री, कपूर और सोपारी पड़े हैं। यह ताम्बूल सुधा के माधुर्य से परिपूर्ण है॥१४॥

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीदुर्गासप्तशती पुस्तक कोड 1281 से







पावन वासन्त नवरात्र पर्व एवं 
नव सम्वत्सर 2076 वि० 
की हार्दिक शुभ कामनाएं !!

न मन्त्रं नो यन्त्रं तदपि च न जाने स्तुतिमहो
न चाह्वानं ध्यानं तदपि च न जाने स्तुतिकथा:|
न जाने मुद्रास्ते तदपि च न जाने विलपनं
परं जाने मातस्त्वदनुसरणं क्लेशहरणम् ||”

(हे मात:! मैं तुम्हारा मन्त्र, यन्त्र, स्तुति, आवाहन, ध्यान, स्तुतिकथा, मुद्रा तथा विलाप कुछ भी नहीं जानता; परन्तु सब प्रकार के क्लेशों को दूर करने वाला आपका अनुसरण करना (पीछे चलना) ही जानता हूँ)

---गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित स्तोत्र रत्नावलीपुस्तक से



शुक्रवार, 5 अप्रैल 2019

श्रीदुर्गासप्तशती श्रीदुर्गामानस पूजा (पोस्ट १३)


श्रीदुर्गादेव्यै नमो नम:

अथ श्रीदुर्गासप्तशती
श्रीदुर्गामानस पूजा (पोस्ट १३)

जातीसौरभनिर्भरं रुचिकरं शाल्योदनं निर्मलं
युक्तं हिङ्गुमरीचजीरसुरभिर्द्रव्यान्वितैर्व्यञ्जनैः ।
पक्वान्नेन सपायसेन मधुना दध्याज्यसम्मिश्रितं
नैवेद्यं सुरकामिनीविरचितं श्रीचण्डिके त्वन्मुदे ॥ १३॥

श्रीचण्डिका देवि! देववधुओंने तुम्हारी प्रसन्नताके लिये यह दिव्य नैवेद्य तैयार किया है, इसमें अगहनीके चावलका स्वच्छ भात है, जो बहुत ही रुचिकर और चमेली के सुगन्धसे वासित है। साथ ही हींग, मिर्च और जीरा आदि सुगन्धित द्रव्योंसे छौंक-बघारकर बनाये हुए नाना प्रकारके व्यञ्जन भी हैं, इसमें भाँति-भाँतिके पकवान, खीर, मधु, दही और घीका भी मेल है॥१३॥

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीदुर्गासप्तशती पुस्तक कोड 1281 से




पुत्रगीता (पोस्ट 06)


||श्रीहरि||


पुत्रगीता (पोस्ट 06)

सञ्चिन्वानकमेवैनं कामानामवितृप्तकम्।
व्याघ्रः पशुमिवादाय मृत्युरादाय गच्छति॥१९ ॥
इदं कृतमिदं कार्यमिदमन्यत् कृताकृतम्।
एवमीहासुखासक्तं कृतान्तः कुरुते वशे॥२०॥
कृतानां फलमप्राप्तं कर्मणां कर्मसंज्ञितम्।
क्षेत्रापणगृहासक्तं मृत्युरादाय गच्छति॥२१॥
दुर्बलं बलवन्तं च शूरं भीरु जडे कविम्।
अप्राप्तं सर्वकामार्थान् मृत्युरादाय गच्छति॥ २२॥
मृत्युर्जरा च व्याधिश्च दुःखं चानेककारणम्।
अनुषक्तं यदा देहे किं स्वस्थ इव तिष्ठसि॥२३॥
जातमेवान्तकोऽन्ताय जरा चान्वेति देहिनम्।
अनुषक्ता द्वयेनैते भावाः स्थावरजङ्माः॥२४॥ 

जबतक मनुष्य भोगोंसे तृप्त नहीं होता, संग्रह ही करता रहता है, तभीतक ही उसे मौत आकर ले जाती है। ठीक वैसे ही, जैसे व्याघ्र किसी पशुको ले जाता है॥ १९ ॥
मनुष्य सोचता है कि यह काम पूरा हो गया, यह अभी करना है और यह अधूरा ही पड़ा है; इस प्रकार चेष्टाजनित सुखमें आसक्त हुए मानवको काल अपने वशमें कर लेता है॥ २०॥
मनुष्य अपने खेत, दूकान और घरमें ही फँसा रहता है, उसके किये हुए उन कर्मोंका फल मिलने भी नहीं पाता, उसके पहले ही उस कर्मासक्त मनुष्य को मृत्यु उठा ले जाती है॥ २१ ॥
कोई दुर्बल हो या बलवान्, शूरवीर हो या डरपोक तथा मूर्ख हो या विद्वान्, मृत्यु उसकी समस्त कामनाओंके पूर्ण होने से पहले ही उसे उठा ले जाती है॥ २२॥
पिताजी ! जब इस शरीरमें मृत्यु, जरा, व्याधि और अनेक कारणोंसे होनेवाले दुःखोंका आक्रमण होता ही रहता है, तब आप स्वस्थ से होकर क्यों बैठे हैं ?॥ २३ ॥
देहधारी जीवके जन्म लेते ही अन्त करनेके लिये मौत और बुढ़ापा उसके पीछे लग जाते हैं। ये समस्त चराचर प्राणी इन दोनोंसे बँधे हुए हैं॥ २४॥

----गीताप्रेस गोरखपुर द्वारा प्रकाशित ‘गीता-संग्रह’ पुस्तक (कोड 1958) से



श्रीदुर्गासप्तशती श्रीदुर्गामानस पूजा (पोस्ट १२)


श्रीदुर्गादेव्यै नमो नम:

अथ श्रीदुर्गासप्तशती
श्रीदुर्गामानस पूजा (पोस्ट १२)

घृतद्रवपरिस्फुरद्रुचिररत्नयष्ट्यान्वितो
महातिमिरनाशनः सुरनितम्बिनीनिर्मितः ।
सुवर्णचषकस्थितः सघनसारवर्त्यान्वित-
स्तव त्रिपुरसुन्दरि स्फुरति देवि दीपो मुदे ॥ १२॥

देवी त्रिपुरसुन्दरी! तुम्हारी प्रसन्नता के लिये यहाँ यह दीप  प्रकाशित हो रहा है। यह घी से जलता है; इसकी दीयटमें सुन्दर रत्नका डंडा लगा है, इसे देवाङ्गनाओं ने बनाया है। यह दीपक सुवर्णके चषक (पात्र) में जलाया गया है। इसमें कपूर के साथ बत्ती रखी है। यह भारी-से-भारी अन्धकार का भी नाश  करनेवाला है॥१२॥

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीदुर्गासप्तशती पुस्तक कोड 1281 से





गुरुवार, 4 अप्रैल 2019

श्रीदुर्गासप्तशती श्रीदुर्गामानस पूजा (पोस्ट ११)


श्रीदुर्गादेव्यै नमो नम:

अथ श्रीदुर्गासप्तशती
श्रीदुर्गामानस पूजा (पोस्ट ११)

मांसीगुग्गुलचन्दनागुरुरजः कर्पूरशैलेयजै-
र्माध्वीकैः सहकुङ्कुमैः सुरचितैः सर्पिभिरामिश्रितैः ।
सौरभ्यस्थितिमन्दिरे मणिमये पात्रे भवेत् प्रीतये
धूपोऽयं सुरकामिनीविरचितः श्रीचण्डिके त्वन्मुदे ॥ ११॥

श्रीचण्डिका देवि! देववधुओं के द्वारा तैयार किया हुआ यह दिव्य धूप तुम्हारी प्रसन्नता बढ़ानेवाला हो। यह धूप रत्नमय पात्र में, जो सुगन्ध का निवासस्थान है, रखा हुआ है; यह तुम्हें सन्तोष प्रदान करे। इसमें जटामासी, गुग्गुल, चन्दन, अगुरु-चूर्ण, कपूर, शिलाजीत, मधु, कुङ्कम तथा घी मिलाकर उत्तम रीति से बनाया गया है॥११॥

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गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीदुर्गासप्तशती पुस्तक कोड 1281 से




पुत्रगीता (पोस्ट 05)


||श्रीहरि||


पुत्रगीता (पोस्ट 05)

को हि जानाति कस्याद्य मृत्युकालो भविष्यति।
(न मृत्युरामन्त्रयते हर्तुकामो जगत्प्रभुः।
अबुद्ध एवाक़मते मीनान् मीनग्रहो यथा॥)
युवैव धर्मशीलः स्यादनित्यं खलु जीवितम्।
कृते धर्मे भवेत् कीर्तिरिह प्रेत्य च वै सुखम्॥१६॥
मोहेन हि समाविष्टः पुत्रदारार्थमुद्यतः।
कृत्वा कार्यमकार्यं वा पुष्टिमेषां प्रयच्छति॥१७॥
तं पुत्रपशुसम्पन्नं व्यासक्तमनसे नरम्।
सुप्तं व्याघ्रो मृगमिव मृत्युरादाय गच्छति॥१८॥

कौन जानता है कि किसका मृत्युकाल आज ही उपस्थित होगा? सम्पूर्ण जगत् पर प्रभुत्व रखनेवाली मृत्यु जब किसीको हरकर ले जाना चाहती है तो उसे पहलेसे निमन्त्रण नहीं भेजती है। जैसे मछेरे चुपकेसे आकर मछलियोंको पकड़ लेते हैं, उसी प्रकार मृत्यु भी अज्ञात रहकर ही आक्रमण करती है। अतः युवावस्था में ही सबको धर्मका आचरण करना चाहिये; क्योंकि जीवन निःसन्देह अनित्य है। धर्माचरण करनेसे इस लोकमें मनुष्यकी कीर्तिका विस्तार होता है और परलोकमें भी उसे सुख मिलता है। जो मनुष्य मोहमें डूबा हुआ है, वही पुत्र और स्त्रीके लिये उद्योग करने लगता है और करने तथा न करनेयोग्य काम करके इन सबका पालन-पोषण करता है॥ १६-१७॥
जैसे सोये हुए मृगको बाघ उठा ले जाता है, उसी प्रकार पुत्र और पशुओंसे सम्पन्न एवं उन्हीं में मनको फँसाये रखनेवाले मनुष्यको एक दिन मृत्यु आकर उठा ले जाती है॥ १८॥

----गीताप्रेस गोरखपुर द्वारा प्रकाशित ‘गीता-संग्रह’ पुस्तक (कोड 1958) से



श्रीदुर्गासप्तशती श्रीदुर्गामानस पूजा (पोस्ट १०)


श्रीदुर्गादेव्यै नमो नम:

अथ श्रीदुर्गासप्तशती
श्रीदुर्गामानस पूजा (पोस्ट १०)

कह्लारोत्पलनागकेसरसरोजाख्यावलीमालती-
मल्लीकैरवकेतकादिकुसुमै रक्ताश्वमारादिभिः ।
पुष्पैर्माल्यभरेण वै सुरभिणा नानारसस्रोतसा
ताम्राम्भोजनिवासिनीं भगवतीं श्रीचण्डिकां पूजये ॥ १०॥

मैं कह्लार, उत्पल, नागकेसर, कमल, मालती, मल्लिका, कुमुद, केतकी और लाल कनेर आदि फूलोंसे, सुगन्धित पुष्पमालाओंसे तथा नाना प्रकारके रसोंकी धारासे लाल कमलके
भीतर निवास करनेवाली श्रीचण्डिका देवीकी पूजा करता  हूँ ॥१०॥

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीदुर्गासप्तशती पुस्तक कोड 1281 से




बुधवार, 3 अप्रैल 2019

श्रीदुर्गासप्तशती श्रीदुर्गामानस पूजा (पोस्ट ०९)


श्रीदुर्गादेव्यै नमो नम:

अथ श्रीदुर्गासप्तशती
श्रीदुर्गामानस पूजा (पोस्ट ०९)

कस्तूरीद्रवचन्दनागुरुसुधाधाराभिराप्लावितं
चञ्चच्चम्पकपाटलादिसुरभिर्द्रव्यैः सुगन्धीकृतम् ।
देवस्त्रीगणमस्तकस्थितमहारत्नादिकुम्भव्रजै-
रम्भःशाम्भवि सम्भ्रमेण विमलं दत्तं गृहाणाम्बिके ॥ ९॥

भगवान् शंकरकी धर्मपत्नी पार्वतीदेवी! देवाङ्गनाओं के मस्तकपर रखे हुए बहुमूल्य रत्नमय कलशोंद्वारा शीघ्रतापूर्वक दिया जानेवाला हैं यह निर्मल जल ग्रहण करो। इसे चम्पा और गुलाल आदि सुगन्धित द्रव्यों से सुवासित किया गया है तथा यह कस्तूरीरस, चन्दन, अगुरु हैं और सुधा की धारा से आप्लावित है॥९॥

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीदुर्गासप्तशती पुस्तक कोड 1281 से





पुत्रगीता (पोस्ट 04)



||श्रीहरि||


पुत्रगीता (पोस्ट 04)

शष्याणीविचिन्वन्तमन्यत्रगतमानसम्।
वृकीवोरणमासाद्य मृत्युरादाय गच्छति॥ १३॥
अद्यैव कुरु यच्छ्यो मा त्वां कालोऽत्यगादयम्।
अकृतेष्वेव कार्येषु मृत्युर्वै सम्प्रकर्षति॥१४॥
श्वः कार्यमद्य कुर्वीत पूर्वाह्ने चापराह्निकम्।
न हि प्रतीक्षते मृत्युः कृतमस्य न वा कृतम्॥१५॥

जैसे घास चरते हुए भेंड़े के पास अचानक व्याघ्री पहुँच जाती है और उसे दबोचकर चल देती है, उसी प्रकार मनुष्यका मन जब दूसरी ओर लगा होता है, उसी समय सहसा मृत्यु आ जाती है और उसे लेकर चल देती है॥ १३ ॥ इसलिये जो कल्याणकारी कार्य हो, उसे आज ही कर डालिये। आपका यह समय हाथसे निकल न जाय; क्योंकि सारे काम अधूरे ही पड़े रह जायँगे और मौत आपको खींच ले जायगी॥१४॥
कल किया जानेवाला काम आज ही पूरा कर लेना चाहिये। जिसे सायंकालमें करना है, उसे प्रातःकालमें ही कर लेना चाहिये; क्योंकि मौत यह नहीं देखती कि इसका काम अभी पूरा हुआ या नहीं॥ १५ ॥

----गीताप्रेस गोरखपुर द्वारा प्रकाशित ‘गीता-संग्रह’ पुस्तक (कोड 1958) से



श्रीमद्भागवतमहापुराण तृतीय स्कन्ध-पांचवां अध्याय..(पोस्ट०९)

॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥ श्रीमद्भागवतमहापुराण  तृतीय स्कन्ध - पाँचवा अध्याय..(पोस्ट०९) विदुरजीका प्रश्न  और मैत्रेयजीका सृष्टिक्रमवर्णन देव...