शुक्रवार, 14 सितंबर 2018

||श्री परमात्मने नम: || विवेक चूडामणि (पोस्ट .१०)

||श्री परमात्मने नम: ||
विवेक चूडामणि (पोस्ट .१०)
साधन चतुष्टय
सहनं सर्वदु:खानामप्रतीकारपूर्वकम् |
चिन्ताविलापरहितं सा तितिक्षा निगद्यते ||२५||
(चिंता और शोक से रहित होकर बिना कोई प्रतिकार किये सब प्रकार के कष्टों का सहन करना “तितिक्षा” कहलाती है)
शास्त्रस्य गुरुवाक्यस्य सत्यबुद्ध्यवधारणम् |
सा श्रद्धा कथिता सद्भिर्यया वस्तुपलभ्यते || २६||
(शास्त्र और गुरुवाक्यों में सत्यत्व बुद्धि करना- इसी को सज्जनों ने “श्रद्धा” कहा है, जिससे कि वस्तु की प्राप्ति होती है )
नारायण ! नारायण !!
शेष आगामी पोस्ट में
---गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित “विवेक चूडामणि”..हिन्दी अनुवाद सहित(कोड-133) पुस्तकसे


गुरुवार, 13 सितंबर 2018

|श्री परमात्मने नम: || विवेक चूडामणि (पोस्ट.०९)

|श्री परमात्मने नम: ||
विवेक चूडामणि (पोस्ट.०९)
साधन चतुष्टय
तद्वैराग्यं जुगुप्सा या दर्शन-श्रवणादिभि: ||२१||
देहादिब्रह्मपर्यन्ते ह्यनित्ये भोगवस्तुनि |
(दर्शन और श्रवणादि के द्वारा देह से लेकर ब्रह्मलोकपर्यन्त सम्पूर्ण अनित्य भोग पदार्थों में जो घृणाबुद्धि है वही “ वैराग्य” है)
विरज्य विषयव्राताद्दोषदृष्ट्या मुहुर्मुहु: ||२२||
स्वलक्ष्ये नियतावस्था मनस: शम उच्यते |
(बारम्बार दोष-दृष्टि करने से विषय-समूह से विरक्त होकर चित्त का अपने लक्ष्य में स्थिर हो जाना ही “शम” है )
विषयेभ्य: परावर्त्य स्थापनं स्वस्वगोलके ||२३||
उभयेषामिन्द्रियाणां स दम: परिकीर्तित: |
बाह्यानालंबनं वृत्तेरेषोपरतिरुत्तमा ||२४||
(कर्मेन्द्रिय और ज्ञानेन्द्रिय दोनों को उनके विषयों से खींचकर अपने-अपने गोलकों में स्थित करना “दम” कहलाता है | वृत्तिका बाह्य विषयों का आश्रय न लेना यही उत्तम “उपरति” है)
नारायण ! नारायण !!
शेष आगामी पोस्ट में
---गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित “विवेक चूडामणि”..हिन्दी अनुवाद सहित(कोड-133) पुस्तकसे


बुधवार, 12 सितंबर 2018

||श्री परमात्मने नम: || विवेक चूडामणि (पोस्ट.०८)

||श्री परमात्मने नम: ||
विवेक चूडामणि (पोस्ट.०८)
साधन चतुष्टय
साधनान्यत्र चत्वारि कथितानि मनीषिभि: |
येषु सत्स्वेव सन्निष्ठा यदभावे न सिद्धयति ||१८||
(यहाँ मनस्वियों ने जिज्ञासा के चार साधन बताए हैं,उनके होने से ही सत्यस्वरूप आत्मा में स्थिति हो सकती है, उनके बिना नहीं )
आदौ नित्यानित्यवस्तुविवेक: परिगण्यते |
इहामुत्रफलभोगविरागस्तदनन्तरम् ||१९||
शमादिषट्कसम्पत्तिर्मुमुक्षुत्वमिति स्फुटम् |
( पहला साधन नित्यानित्य-वस्तु-विवेक गिना जाता है, दूसरा लौकिक एवं पारलौकिक सुख-भोग में वैराग्य होना है | तीसरा शम, दम, उपरति,तितिक्षा,श्रद्धा, समाधान –ये छ: सम्पत्तियां हैं , और चौथा मुमुक्षता है)
ब्रह्म सत्यं जगन्मिथ्येत्येवं रूपो विनिश्चय: ||२०||
सोऽयं नित्यानित्यवस्तुविवेक: समुदाहृत: |
( “ ब्रह्म सत्य है और जगत मिथ्या है ”- ऐसा जो निश्चय है, यही नित्यानित्य-वस्तु-विवेक कहलाता है )
नारायण ! नारायण !!
शेष आगामी पोस्ट में
---गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित “विवेक चूडामणि”..हिन्दी अनुवाद सहित(कोड-133) पुस्तकसे


मंगलवार, 11 सितंबर 2018

||श्री परमात्मने नम: || विवेक चूडामणि (पोस्ट.०७)



||श्री परमात्मने नम: ||
विवेक चूडामणि (पोस्ट.०७)
अधिकारी निरूपण
अधिकारिणमाशास्ते फलसिद्धिर्विशेषत: |
उपाया देशकालाद्या: संत्यस्मिन्सहकारिण: ||१४||
(विशेषत: अधिकारी को ही फल सिद्धि होती है; देश, काल आदि उपाय भी उसमें सहायक अवश्य होते हैं )
अतो विचार: कर्तव्यो जिज्ञासोरात्मवस्तुन: |
समासाद्य दयासिंधुं गुरुं ब्रह्मविदुत्तमम् || १५||
(अत: ब्रह्मवेत्ताओं में श्रेष्ठ दयासागर गुरुदेव की शरण में जाकर जिज्ञासु को आत्मतत्त्व का विचार करना चाहिए)
मेधावी पुरुषो विद्वानूहापोहविचक्षण: |
अधिकार्यात्मविद्यायामुक्तलक्षणलक्षित: ||१६||
(जो बुद्धिमान हो,विद्वान हो और तर्क-वितर्क में कुशल हो, ऐसे लक्षणों वाला पुरुष ही आत्मविद्या का अधिकारी होता है)
विवेकिनो विरक्तस्य शमादिगुणशालिन: |
मुमुक्षोरेव हि ब्रह्मजिज्ञासायोग्यता मता ||१७||
(जो सदसद्विवेकी, वैराग्यवान,शम-दमादि षट्सम्पत्तियुक्त और मुमुक्षु हो उसी में ब्रह्मजिज्ञासा की योग्यता मानी गयी है)
नारायण ! नारायण !!
शेष आगामी पोस्ट में
---गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित विवेक चूडामणि”..हिन्दी अनुवाद सहित(कोड-133) पुस्तकसे




सोमवार, 10 सितंबर 2018

||श्री परमात्मने नम: || विवेक चूडामणि (पोस्ट.०६)


||श्री परमात्मने नम: ||
विवेक चूडामणि (पोस्ट.०६)
ज्ञानोपलब्धि का उपाय
सम्यग्विचारत: सिद्धा रज्जुतत्त्वावधारणा |
भ्रान्त्योदितमहासर्पभयदु:खविनाशिनी ||१२||
(भलीभाँति विचार से शुद्ध हुआ रज्जुतत्त्व का निश्चय भ्रम से उत्पन्न हुए महान् सर्पभयरूपी दु:ख को नष्ट करने वाला होता है)
अर्थस्य निश्चयो दृष्टो विचारेण हितोक्तित: |
न स्नानेन न दानेन प्राणायामशतेन वा ||१३||
(कल्याणप्रद उक्तियों द्वारा विचार करने से वस्तु का निश्चय होता देखा जाता है; स्नान, दान अथवा सैंकडों प्राणायामों से नहीं)
नारायण ! नारायण !!
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---गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित “विवेक चूडामणि”..हिन्दी अनुवाद सहित(कोड-133) पुस्तकसे


गुरुवार, 6 सितंबर 2018

||श्री परमात्मने नम: || विवेक चूडामणि (पोस्ट.०५)


||श्री परमात्मने नम: || 

विवेक चूडामणि (पोस्ट.०५)

ज्ञानोपलब्धि का उपाय 

संन्यस्य सर्वकर्माणि भवबन्धविमुक्तये |
यत्यतां पण्डितैर्धीरैरात्माभ्यास उपस्थितै : ||१०||

(आत्माभ्यास में तत्पर हुए धीर विद्वानों को सम्पूर्ण कर्मों को त्याग कर भवबंधन की निवृत्ति के लिए प्रयत्न करना चाहिए)

चित्तस्य शुद्धये कर्म न तु वस्तूपलब्धये |
वस्तुसिद्धिविचारेण न किंचित् कर्मकोटिभि: ||११||

(कर्म चित्त की शुद्धि के लिए ही है, वस्तूपलब्धि (तत्त्वदृष्टि)- के लिए नहीं | वस्तु-सिद्धि तो विचार से ही होती है, करोड़ों कर्मों से कुछ भी नहीं हो सकता)

नारायण ! नारायण !!

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---गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित “विवेक चूडामणि”..हिन्दी अनुवाद सहित(कोड-133) पुस्तकसे


||श्री परमात्मने नम :|| विवेक चूडामणि (पोस्ट.०४)




||श्री परमात्मने नम :|| 
विवेक चूडामणि (पोस्ट.०४)


ज्ञानोपलब्धि का उपाय 

अतो विमुक्त्यै प्रयतेत विद्वान्
संन्यस्तबाह्यार्थसुखस्पृह: सन् |
सन्तं महान्तं समुपेत्य देशिकं
तेनोपदिष्टार्थसमाहितात्मा ||||

(इसलिए विद्वान सम्पूर्ण बाह्य भोगों की इच्छा त्याग कर सन्त शिरोमणि गुरुदेव की शरण जाकर उनके उपदेश किये हुए विषय में समाहित होकर मुक्ति के लिए प्रयत्न करे)

उद्धरेदात्मनात्मानं मग्नं संसारवारिधौ |
योगारूढ़त्वमासाद्य सम्यग्दर्शननिष्ठया || ||

(और निरन्तर सत्य वस्तु आत्मा के दर्शन में स्थित रहता हुआ योगारूढ होकर संसार-समुद्र में डूबे हुए अपनी आत्मा का आप ही उद्धार करें)

नारायण ! नारायण !!

शेष आगामी पोस्ट में 
---गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित विवेक चूडामणि”..हिन्दी अनुवाद सहित(कोड-133) पुस्तकसे



||श्री परमात्मने नम :|| विवेक चूडामणि (पोस्ट.०३)


||श्री परमात्मने नम :||
विवेक चूडामणि (पोस्ट.०३)
ब्रह्मनिष्ठा का महत्त्व
वदन्तु शास्त्राणि यजन्तु देवान्
कुर्वन्तु कर्माणि भजन्ति देवता : |
आत्मैक्यबोधेन विना विमुक्ति-
र्न सिध्यति ब्रह्मशतान्तरेपि ||६||
( भले ही कोई शास्त्रों की व्याख्या करें, देवताओं का यजन करें, नाना शुभकर्म करें अथवा देवताओं को भजें, तथापि जब तक ब्रह्म और आत्मा की एकता का बोध नहीं होता, तब तक सौ ब्रह्माओं के बीत जाने पर भी [अर्थात् सौ कल्पों में भी] मुक्ति नहीं हो सकती)
अमृतत्वस्य नाशास्ति वित्तेनेत्येव हि श्रुति: |
ब्रवीति कर्मणो मुक्तेरहेतुत्वं स्फुटं यात: || ७||
(क्योंकि ‘धन से अमृतत्व की आशा नहीं है’ यह श्रुति ‘मुक्ति का हेतु कर्म नहीं है’, यह बात स्पष्ट बतलाती है)
नारायण ! नारायण !!
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||श्री परमात्मने नम :|| विवेक चूडामणि (पोस्ट.०२)



||श्री परमात्मने नम :||

विवेक चूडामणि (पोस्ट.०२)


लब्ध्वा कथञ्चिन्नरजन्म दुर्लभं
तत्रापि पुंस्त्वं श्रुतिपारदर्शनम् |
य: स्वात्ममुक्तौ न यतेत मूढ़धी:
स ह्यात्महा स्वं विनिहन्त्यसद्ग्रहात् || ||

(किसी प्रकार इस दुर्लभ मनुष्य जन्म को पाकर और उसमें भी, जिसमें श्रुति के सिद्धात का ज्ञान होता है ऐसा पुरुषत्व पाकर जो मूढ़बुद्धि अपने आत्मा की मुक्ति के लिए प्रयत्न नहीं करता, वह निश्चय ही आत्मघाती है; वह असत् में आस्था रखने के कारण अपने को नष्ट करता है)

इत: को न्वस्ति मूढात्मा यस्तु स्वार्थे प्रमाद्यति |
दुर्लभं मानुषं देहं प्राप्य तत्रापि पौरुषम् ||||

(दुर्लभ मनुष्य-देह और उसमें भी पुरुषत्व को पाकर जो स्वार्थ-साधन में प्रमाद करता है, उससे अधिक मूढ़ और कौन होगा ?)

नारायण ! नारायण !!

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||श्री परमात्मने नम :|| विवेक चूडामणि (पोस्ट.०२)



||श्री परमात्मने नम :||

विवेक चूडामणि (पोस्ट.०२)


लब्ध्वा कथञ्चिन्नरजन्म दुर्लभं
तत्रापि पुंस्त्वं श्रुतिपारदर्शनम् |
य: स्वात्ममुक्तौ न यतेत मूढ़धी:
स ह्यात्महा स्वं विनिहन्त्यसद्ग्रहात् || ||

(किसी प्रकार इस दुर्लभ मनुष्य जन्म को पाकर और उसमें भी, जिसमें श्रुति के सिद्धात का ज्ञान होता है ऐसा पुरुषत्व पाकर जो मूढ़बुद्धि अपने आत्मा की मुक्ति के लिए प्रयत्न नहीं करता, वह निश्चय ही आत्मघाती है; वह असत् में आस्था रखने के कारण अपने को नष्ट करता है)

इत: को न्वस्ति मूढात्मा यस्तु स्वार्थे प्रमाद्यति |
दुर्लभं मानुषं देहं प्राप्य तत्रापि पौरुषम् ||||

(दुर्लभ मनुष्य-देह और उसमें भी पुरुषत्व को पाकर जो स्वार्थ-साधन में प्रमाद करता है, उससे अधिक मूढ़ और कौन होगा ?)

नारायण ! नारायण !!

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श्रीमद्भागवतमहापुराण तृतीय स्कन्ध-पांचवां अध्याय..(पोस्ट१२)

॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥ श्रीमद्भागवतमहापुराण  तृतीय स्कन्ध - पाँचवा अध्याय..(पोस्ट१२) विदुरजीका प्रश्न  और मैत्रेयजीका सृष्टिक्रमवर्णन तत्...