||श्री परमात्मने नम: ||
विवेक चूडामणि (पोस्ट.२७)
स्थूल शरीर
त्वङ्मांसरुधिरस्नायुमेदोमज ्जास्थिसंकुलम् ।
पूर्णं मूत्रपुरीषाभ्यां स्थूलं निन्द्यमिदं वपुः ॥ ८९ ॥
(त्वचा,मांस,रक्त,स्नायु (नस),मेद मज्जा और अस्थियों का समूह तथा मल-मूत्र से भरा हुआ यह स्थूल देह अति निंदनीय है)
पञ्चीकृतेभ्यो भूतेभ्यः स्थूलेभ्यः पूर्वकर्मणा ।
समुत्पन्नमिदं स्थूलं भोगायतनमात्मनः ।
अवस्था जागरस्तस्य स्थूलार्थानुभवो यतः ॥ ९० ॥
(पंचीकृत स्थूल भूतों से पूर्व-कर्मानुसार उत्पन्न हुआ यह शरीर आत्मा का स्थोल भोगायतन है; इसकी [प्रतीति की] अवस्था जाग्रत् है, जिसमें कि स्थूल पदार्थों का अनुभव होता है )
बाह्येन्द्रियैः स्थूलपदार्थसेवां
स्रक्चन्दनस्त्र्यादिविचित् ररूपाम् ।
करोति जीवः स्वयमेतदात्मना
तस्मात्प्रशस्तिर्वपुषोऽस्य जागरे ॥ ९१ ॥
(इससे तादात्म्य को प्राप्त होकर ही जीव माला , चन्दन तथा स्त्री अदि नाना प्रकार के स्थूल पदार्थों को बाह्येंद्रियों से सेवन कर्ता है, इसलिए जाग्रत-अवस्था में इस स्थूल देह की प्रधानता है)
सर्वोऽपि बाह्यसंसारः पुरुषस्य यदाश्रयः ।
विद्धि देहमिदं स्थूलं गृहवद्गृहमेधिनः ॥ ९२ ॥
(जिसके आश्रय से जीव को सम्पूर्ण बाह्य जगत् प्रतीत होता है, गृहस्थ के घर के तुल्य उसे ही स्थूल देह जानो)
स्थूलस्य सम्भवजरामरणानि धर्माः
स्थौल्यादयो बहुविधाः शिशुताद्यवस्था ।
वर्णाश्रमादिनियमा बहुधा यमाः स्युः
पूजावमानबहुमानमुखा विशेषाः ॥ ९३ ॥
(स्थूल देह के ही जन्म, जरा, मरण, तथा स्थूलता आदि धर्म हैं; बालकपन आदि नाना प्रकार की अवस्थाएं हैं; वर्णाश्रमादि अनेक प्रकार के नियम और यम हैं; तथा इसी की पूजा, मान अपमान आदि विशेषताएं हैं)
नारायण ! नारायण !!
शेष आगामी पोस्ट में
---गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित “विवेक चूडामणि”..हिन्दी अनुवाद सहित(कोड-133) पुस्तकसे
विवेक चूडामणि (पोस्ट.२७)
स्थूल शरीर
त्वङ्मांसरुधिरस्नायुमेदोमज
पूर्णं मूत्रपुरीषाभ्यां स्थूलं निन्द्यमिदं वपुः ॥ ८९ ॥
(त्वचा,मांस,रक्त,स्नायु (नस),मेद मज्जा और अस्थियों का समूह तथा मल-मूत्र से भरा हुआ यह स्थूल देह अति निंदनीय है)
पञ्चीकृतेभ्यो भूतेभ्यः स्थूलेभ्यः पूर्वकर्मणा ।
समुत्पन्नमिदं स्थूलं भोगायतनमात्मनः ।
अवस्था जागरस्तस्य स्थूलार्थानुभवो यतः ॥ ९० ॥
(पंचीकृत स्थूल भूतों से पूर्व-कर्मानुसार उत्पन्न हुआ यह शरीर आत्मा का स्थोल भोगायतन है; इसकी [प्रतीति की] अवस्था जाग्रत् है, जिसमें कि स्थूल पदार्थों का अनुभव होता है )
बाह्येन्द्रियैः स्थूलपदार्थसेवां
स्रक्चन्दनस्त्र्यादिविचित्
करोति जीवः स्वयमेतदात्मना
तस्मात्प्रशस्तिर्वपुषोऽस्य
(इससे तादात्म्य को प्राप्त होकर ही जीव माला , चन्दन तथा स्त्री अदि नाना प्रकार के स्थूल पदार्थों को बाह्येंद्रियों से सेवन कर्ता है, इसलिए जाग्रत-अवस्था में इस स्थूल देह की प्रधानता है)
सर्वोऽपि बाह्यसंसारः पुरुषस्य यदाश्रयः ।
विद्धि देहमिदं स्थूलं गृहवद्गृहमेधिनः ॥ ९२ ॥
(जिसके आश्रय से जीव को सम्पूर्ण बाह्य जगत् प्रतीत होता है, गृहस्थ के घर के तुल्य उसे ही स्थूल देह जानो)
स्थूलस्य सम्भवजरामरणानि धर्माः
स्थौल्यादयो बहुविधाः शिशुताद्यवस्था ।
वर्णाश्रमादिनियमा बहुधा यमाः स्युः
पूजावमानबहुमानमुखा विशेषाः ॥ ९३ ॥
(स्थूल देह के ही जन्म, जरा, मरण, तथा स्थूलता आदि धर्म हैं; बालकपन आदि नाना प्रकार की अवस्थाएं हैं; वर्णाश्रमादि अनेक प्रकार के नियम और यम हैं; तथा इसी की पूजा, मान अपमान आदि विशेषताएं हैं)
नारायण ! नारायण !!
शेष आगामी पोस्ट में
---गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित “विवेक चूडामणि”..हिन्दी अनुवाद सहित(कोड-133) पुस्तकसे