||श्री परमात्मने नम: ||
विवेक चूडामणि (पोस्ट.३७)
सत्त्वगुण
सत्त्वं विशुद्धं जलवत्तथापि
ताभ्यां मिलित्वा सरणाय कल्पते ।
यत्रात्मबिम्बः प्रतिबिम्बितः सन्
प्रकाशयत्यर्क इवाखिलं जडम् ॥ ११९ ॥
(सत्त्वगुण जल के समान शुद्ध है, तथापि रज और तम से मिलने पर वह भी पुरुष की प्रवृत्ति का कारण होता है; इसमें प्रतिबिंबित होकर आत्मबिम्ब सूर्य के समान समस्त जड पदार्थों को प्रकाशित करता है)
मिश्रस्य सत्त्वस्य भवन्ति धर्मा-
स्त्वमानिताद्या नियमा यमाद्याः ।
श्रद्धा च भक्तिश्च मुमुक्षुता च
दैवी च सम्पत्तिरसन्निवृत्तिः ॥ १२० ॥
(अमानित्व आदि यम-नियमादि, श्रद्धा,भक्ति, मुमुक्षता, दैवी-सम्पत्ति तथा असत् का त्याग- ये मिश्र (रज-तम से मिले हुए) सत्त्वगुण के धर्म हैं)
विशुद्धसत्त्वस्य गुणाः प्रसादः
स्वात्मनुभूतिः परमा प्रशान्तिः ।
तृप्तिः प्रहर्षः परमात्मनिष्ठा
यया सदानन्दरसं समृच्छति ॥ १२१ ॥
(प्रसन्नता,आत्मानुभव, परमशांति, तृप्ति ,आत्यन्तिक आनन्द और परमात्मा में स्थिति- ये विशुद्ध सत्त्वगुण के धर्म हैं, जिनसे मुमुक्षु नित्यानन्दरस को प्राप्त करता है)
नारायण ! नारायण !!
शेष आगामी पोस्ट में
---गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित “विवेक चूडामणि”..हिन्दी अनुवाद सहित(कोड-133) पुस्तकसे
विवेक चूडामणि (पोस्ट.३७)
सत्त्वगुण
सत्त्वं विशुद्धं जलवत्तथापि
ताभ्यां मिलित्वा सरणाय कल्पते ।
यत्रात्मबिम्बः प्रतिबिम्बितः सन्
प्रकाशयत्यर्क इवाखिलं जडम् ॥ ११९ ॥
(सत्त्वगुण जल के समान शुद्ध है, तथापि रज और तम से मिलने पर वह भी पुरुष की प्रवृत्ति का कारण होता है; इसमें प्रतिबिंबित होकर आत्मबिम्ब सूर्य के समान समस्त जड पदार्थों को प्रकाशित करता है)
मिश्रस्य सत्त्वस्य भवन्ति धर्मा-
स्त्वमानिताद्या नियमा यमाद्याः ।
श्रद्धा च भक्तिश्च मुमुक्षुता च
दैवी च सम्पत्तिरसन्निवृत्तिः ॥ १२० ॥
(अमानित्व आदि यम-नियमादि, श्रद्धा,भक्ति, मुमुक्षता, दैवी-सम्पत्ति तथा असत् का त्याग- ये मिश्र (रज-तम से मिले हुए) सत्त्वगुण के धर्म हैं)
विशुद्धसत्त्वस्य गुणाः प्रसादः
स्वात्मनुभूतिः परमा प्रशान्तिः ।
तृप्तिः प्रहर्षः परमात्मनिष्ठा
यया सदानन्दरसं समृच्छति ॥ १२१ ॥
(प्रसन्नता,आत्मानुभव, परमशांति, तृप्ति ,आत्यन्तिक आनन्द और परमात्मा में स्थिति- ये विशुद्ध सत्त्वगुण के धर्म हैं, जिनसे मुमुक्षु नित्यानन्दरस को प्राप्त करता है)
नारायण ! नारायण !!
शेष आगामी पोस्ट में
---गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित “विवेक चूडामणि”..हिन्दी अनुवाद सहित(कोड-133) पुस्तकसे