||श्री परमात्मने नम: ||
विवेक चूडामणि (पोस्ट.१३)
गुरूपसत्ति और प्रश्नविधि
उक्तसाधनसंपन्नस्तत्वजिज्ञासुरात्मन: ||३३||
उपसीदेद्गुरुं प्राज्ञं यस्माद्बन्धविमोक्षणम् |
उपसीदेद्गुरुं प्राज्ञं यस्माद्बन्धविमोक्षणम् |
(उक्त साधन- चतुष्टय से संपन्न आत्म-तत्त्व का जिज्ञासु प्राज्ञ (स्थितप्रज्ञ) गुरु के निकट जाय, जिससे उसके भवबन्ध की निवृत्ति हो)
श्रोत्रियोऽवृजिनोऽकामहतो यो ब्रह्मवित्तम: ||३४||
ब्रह्मण्युपरत: शान्तो निरिन्धन इवानल : |
अहैतुकदयासिंधुर्बन्धुरानमतां सताम् ||३५||
तमाराध्य गुरुं भक्त्या प्रह्वप्रश्रय सेवनै: |
प्रसन्नं तमनुप्राप्य पृच्छेज्ज्ञातव्यमात्मनः ||३६||
ब्रह्मण्युपरत: शान्तो निरिन्धन इवानल : |
अहैतुकदयासिंधुर्बन्धुरानमतां सताम् ||३५||
तमाराध्य गुरुं भक्त्या प्रह्वप्रश्रय सेवनै: |
प्रसन्नं तमनुप्राप्य पृच्छेज्ज्ञातव्यमात्मनः ||३६||
(जो श्रोत्रिय हों,निष्पाप हों,कामनाओं से शून्य हों,ब्रह्मवेत्ताओं में श्रेष्ठ हों,ब्रह्मनिष्ठ हों,ईंधनरहित अग्नि के समान शान्त हों, अकारण दयासिन्धु हों और प्रणत (शरणापन्न) सज्जनों के बंधु (हितैषी) हों उन गुरुदेव की विनीत और विनम्र सेवा से भक्तिपूर्वक आराधना करके, उनके प्रसन्न होने पर निकट जाकर अपना ज्ञातव्य इस प्रकार पूछें --
स्वामिन्नमस्ते नतलोकबन्धो
कारुण्यसिन्धो पतितं भवाब्धौ |
मामुद्धरात्मीयकटाक्षदृष्टया
ॠज्र्व्यातिकारुण्यसुधाभिवृष्ट्या ||३७||
कारुण्यसिन्धो पतितं भवाब्धौ |
मामुद्धरात्मीयकटाक्षदृष्टया
ॠज्र्व्यातिकारुण्यसुधाभिवृष्ट्या ||३७||
( हे शरणागतवत्सल करुणासागर, प्रभो ! आपको नमस्कार है | संसार-सागर में पड़े हुए मेरा आप अपनी सरल तथा अतिशय कारुण्यामृतवर्षिणी कृपाकटाक्ष से उद्धार कीजिये )
दुर्वारसंसारदवाग्नितप्तं
दोधूयमानं दुरदृष्टवातै: |
भीतं प्रपन्नं परिपाहि मृत्यो:
शरण्यमन्यं यदहं न जाने ||३८||
दोधूयमानं दुरदृष्टवातै: |
भीतं प्रपन्नं परिपाहि मृत्यो:
शरण्यमन्यं यदहं न जाने ||३८||
( जिससे छुटकारा पाना अति कठिन है उस संसार-दावानल से दग्ध तथा दुर्भाग्यरूपी प्रबल प्रभंजन (आँधी)- से अत्यन्त कम्पित और भयभीत हुए मुझ शरणागत की आप मृत्यु से रक्षा कीजिये; क्योंकि मैं इस समय किसी और शरण देने वाले को नहीं जानता)
नारायण ! नारायण !!
शेष आगामी पोस्ट में
---गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित “विवेक चूडामणि”..हिन्दी अनुवाद सहित(कोड-133) पुस्तकसे
---गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित “विवेक चूडामणि”..हिन्दी अनुवाद सहित(कोड-133) पुस्तकसे